भारत और नेपाल के रिश्तों में हाल के बरसों में उतार-चढ़ाव आते रहे हैं. लेकिन इस समय दोनों देशों के रिश्ते नक्शे को लेकर बिल्कुल बिगड़ गए हैं. हालांकि ये पहली बार नहीं हुआ है. पहले जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्री रहते ये स्थिति आई थी. फिर राजीव गांधी की सरकार में भी तनाव बढ़ा था.
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चाइना क्वार्टरली पत्रिका में शेन यू दाई ने “पेकिंग, काठमांडू एंड न्यू दिल्ली” के नाम से एक लंबा लेख लिखा था. हालांकि ये बहुत पुराना लेख है, जो चाइना क्वार्टरली में अक्टूबर 1963 के अंक में पब्लिश हुआ था. लेकिन भारत, चीन और नेपाल के रिश्तों के बीच नेपाल के ढुलमुल रवैये और दोनों देशों से फायदा उठाने को समझने के लिए अब भी उतना ही समसामयिक है.
50 के दशक में नेपाल की वो कोशिश नाकाम हो गई थी
ये लेख कहता है कि 28 अप्रैल 1960 में काठमांडू में चीन और नेपाल के बीच मैत्री संधि हुई. जिसके लिए नेपाल की ओर से कोशिश जारी थी. इसी संबंध में हिंदुस्तान टाइम्स के पूर्व संपादक और पत्रकार दुर्गादास ने लिखा, “50 के दशक के शुरू में नेपाल के प्रधानमंत्री टनक प्रसाद आचार्य पेकिंग गए थे. अपने सम्मान में दिए गए स्वागत समारोह में उन्होंने नेपाल-चीन की मित्रता का नारा उच्चारित किया. माओ इस मौके पर मौजूद थे.”
इसमें आगे लिखा है, “माओ ने तुरंत आचार्य को सही करते हुए नेपाल-चीन-भारत की मित्रता का नारा दिया. भारत की मित्रता ठुकराकर चीन की मित्रता प्राप्त करने की जो कोशिश आचार्य ने की थी, वो विफल हो गई.”
काठमांडू में खोला गया था चाइनीज दूतावास
दरअसल भारत की आजादी के पहले से ही नेपाल की कोशिश चीन को लुभाने की रही. खैर अब हम शेन यू दाई के उस लेख पर आते हैं, लेख के अनुसार,” नेपाल और चीन के बीच मैत्री संधि होने के बाद काठमांडू में चीन का दूतावास खोला गया. इसके बाद नेपाल में अचानक विद्रोहियों की गतिविधियां बढ़ गईं. इसकी अगुवाई भजांग और गोरखा प्रमुख कर रहे थे.”
नेपाल ने चीन से किए दो लगातार समझौते
लेख के अनुसार, तब नेपाल में सरकार को कानून-व्यवस्था बनाए रखने में दिक्कत आने लगी. हालांकि नेपाल में जब चीन का दूतावास खोला गया, उसको लेकर नेपाल के प्रधानमत्री कोइराला नेहरु को भी विश्वास में ले रहे थे. मैत्री संधि होने के बाद अचानक नेपाल से चीन के रिश्ते सुधरने लगे. 18 महीने के भीतर नेपाल और चीन के बीच सीमा को लेकर भी एक समझौता हुआ. चीन से नेपाल के संबंध तेजी से सुधरते दीख रहे धे.

राजा महेंद्र ने कोइराला सरकार को बर्खास्त कर दिया
दूसरी ओर इसके विरोध में नाराजगी भी जनता में थी कि नेपाल क्यों चीन में इतना झुक रहा है. जब राजा महेंद्र को लगा कि सरकार विद्रोहियों से समुचित तरीके से नहीं निपट रही है तो उसने दिसंबर 1960 में कोइराला सरकार को बर्खास्त कर दिया. इसकी जगह अपनी एक परामर्श मंत्रिपरिषद बनाकर काम करना शुरू किया. कोइराला और सरकार के सभी बड़े नेता गिरफ्तार कर लिये गए.
राजा के इशारे पर नेपाल मीडिया में शुरू हुआ भारत का कुप्रचार
राजा को ये महसूस होने लगा कि नेपाल में पल रहा असंतोष और कोइराला सरकार दोनों भारत के प्रभाव में हैं. ये एक ऐसा दौर था जब राजा के इशारे पर नेपाल में भारत के खिलाफ जनमत बनाने की कोशिश हुई. नेपाल के मीडिया में राजा के इशारे पर नेपाल के मीडिया में भारत के खिलाफ कुप्रचार शुरू हो गया.
राजा महेंद्र इस बात से भी कुपित था कि नेहरू ने नेपाल में चुनी हुई सरकार को अपदस्थ करने के उनके कदम को लोकतंत्र के खिलाफ बताया था. नेपाल में अगले कुछ महीने इसी तरह बीते. हालांकि बाद में जब नेहरू ने राजा महेंद्र को बाद के वर्ष में नई दिल्ली आमंत्रित किया, तब भी उन्हें अंदेशा था नेपाल में हो रही तमाम गड़बड़ियां भारत के इशारे पर हो रही हैं.
नेपाल के राजाओं को भारत को लेकर क्या लगता था
1962 में चीन के साथ हुए भारत के युद्ध के बाद नेपाल खुद चीन की हरकत पर अचंभित रह गया. डरा भी. हालांकि नेपाल के राजा महेंद्र और उनके बाद उत्तराधिकारी बने बेटे राजा वीरेंद्र हमेशा बात से लगातार नाखुश रहे कि भारत नेपाल में लोकतंत्र की पैरवी करते हुए वहां सियासी नेताओं को समर्थन देता रहा है. उसके तमाम नेता भारत में शरण पाते रहे हैं.

पाल की यात्रा पर गए तो इस यात्रा पर भी गलतफहमी की छाप नजर आई. राजीव को भी लगता था कि नेपाल का झुकाव चीन की ओर बढ़ रहा है, लिहाजा उन्होंने इसी बात पर कड़ा रवैया अपनाया था.
नेपाल में आर्थिक नाकेबंदी कर दी गई. उससे नेपाल पर बहुत बुरा असर पड़ा. मार्च में परिगमन और वाणिज्यक संधि के समाप्त होने से जनता के कष्ट बढ़ गए. हालांकि नेपाल ने इससे मिलती जुलती नई संधि भारत के साथ की. अब भी ज्यादातर जरूरी सामानों के लिए नेपाल आमतौर पर भारत पर आश्रित है लेकिन वो इसे कम करना चाहता है.
चीन से हथियार खरीदने से नाखुश हुआ था भारत
न्यू यार्क टाइम्स ने उस समय अपनी एक रिपोर्ट में लिखा था कि भारत की नाराजगी नेपाल के चीन से बगैर जानकारी दिए हथियार खरीदने से थी.
राजीव गांधी के समय में नेपाल पर जो आर्थिक प्रतिबंध लागू किए गए वो करीब आठ महीने चले. उसमें नेपाल को बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. तब राजीव गांधी ने नेपाल के रवैये को गैरसहयोगात्मक बताया. नेपाल सरकार का कहना था कि वो भारत के साथ बराबरी का संबंध रखना चाहती है. उसने भारत पर उपनिवेशवादी मानसिकता का आरोप लगाया. दरअसल भारत के नेपाल के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध लगाने का एक बड़ा कारण एक साल पहले चीन से खरीद करना था. जिससे राजीव गांधी की सरकार नाखुश थी.
Input : News18