मुजफ्फरपुर की धरती पर अभी तक शाही और चाइना लीची की मिठास ही घुलती रही है, मगर अब तीन अन्य प्रजातियां अपने स्वाद और पौष्टिकता से लुभाने को तैयार हैं। अनुकूल मौसम की वजह से जून से लेकर मध्य जुलाई तक बाजार में उपलब्ध हो सकेंगी। गंडकी संपदा, गंडकी योगिता और गंडकी लालिमा नामक विकसित प्रजातियां क्रमश: पंतनगर और रांची मूल की हैं। राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र, मुशहरी में लगभग पांच साल तक इन पर अलग-अलग अवस्था और पारिस्थितिकी में शोध किया गया।
तीनों प्रजातियां लेट वेरायटी की
राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के वरीय विज्ञानी डॉ. एसडी पांडेय बताते हैं कि शाही लीची का सीजन मई के अंत तक शुरू हो जाता है। यह करीब 15 दिनों तक रहता है। इसके बाद 10 दिनों तक चाइना लीची मिलती है। कुल मिलाकर राज्य के किसानों की लीची बागवानी भी यहीं तक सीमित रहती है। लेकिन, तीन नई प्रजातियां लेट वेरायटी की हैं। बाजार में शाही और चाइना प्रजाति ही उपलब्ध हो पाती थी, जिन्हेंं 10 जून तक तोड़ लेना होता था। लेकिन, इन प्रजातियों के होने से किसानों के सामने तीन नए विकल्प उपलब्ध हो सकेंगे।
42 ग्राम तक का फल देता गंडकी संपदा प्रभेद
पंतनगर से विकसित यह प्रभेद जून के मध्य में परिपक्व होता है। विज्ञानी डॉ. अलेमवती पोंगेनर बताते हैं कि पकने पर इसका ऊपरी रंग सिंदूर जैसा हो जाता है। एक फल का वजन 35 से 42 ग्राम तक होता है। इसका पल्प मलाईदार-सफेद, नरम और रसीला होता है। प्रति पेड़ 120 से 140 किलोग्राम उपज देता है, जिसमें फलों में फटने की शिकायत नहीं होती और पल्प रिकवरी 80 से 85 फीसद है।
रांची से विकसित हुई गंडकी योगिता
लीची की गंडकी योगिता प्रजाति के पेड़ बौने होते हैं। यह जुलाई के मध्य में पकती है। इसका पल्प रिकवरी औसत 70-75 फीसद है। इस वेरायटी में सुगंध, चीनी व एसिड की प्रचुर मात्रा विकसित की गई है। प्रति पेड़ 70-80 किलोग्राम फल का उत्पादन शोधकाल में किया गया।
प्रति पेड़ 130-140 किलोग्राम उपज देती गंडकी लालिमा
इस प्रजाति को भी रांची से लाकर विकसित किया गया है। 28 से 32 ग्राम का फल देनेवाला लीची का यह प्रभेद जून के मध्य में तैयार हो जाता है। इसके एक पेड़ से 130-140 किलोग्राम तक फल प्राप्त किया जा सकता। इसका पल्प नरम और रसीला होता है। एक फल से 60 फीसद तक पल्प की रिकवरी हो सकती है।
लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ. विशालनाथ का कहना है कि लीची के नए प्रभेद को लेकर किसानों को जागरूक किया जा रहा। जिससे उन्हेंं लीची उत्पादन में विकल्प मिल सके।
खास बातें
- गंडकी संपदा, गंडकी योगिता व गंडकी लालिमा नामक प्रभेद किए गए हैं विकसित
- तीनों विलंब से पकने वाले, अब जुलाई के मध्य तक मिल सकेगी लीची
- राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र, मुशहरी में पांच साल तक इन पर किया गया शोध
Input : Dainik Jagran