पश्चिम चंपारण : वाल्मीकि टाइगर रिजर्व (वीटीआर ) की प्राकृतिक हरियाली के बीच नेपाल की सीमा पर अवस्थित हिमालयन रेंज का सोमेश्वर पहाड़ चंद्र देव और राजा भर्तृहरि की तपोभूमि के रूप में पहचाना जाता रहा है। पश्चिम चंपारण जिले के रामनगर प्रखंड स्थित गोबद्र्धना वन की इस पहाड़ी पर आज भी तपस्वी बने भर्तृहरि की कुटिया के अवशेष शिवालय के समीप मौजूद हैं।
श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र
इतिहास में वर्णित है कि विक्रम की पहली सदी में भर्तृहरि उज्जैन के राजा थे। यहां आकर वर्षों तक वे तपस्या में तल्लीन रहे। उन्होंने यहां एक शिवलिंग स्थापित किया, जो सोमेश्वर महादेव के रूप में श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है।
चैत्र नवरात्र में होता देवी कालिका और सोमेश्वर महादेव का पूजन
भर्तृहरि के तपस्वी बनने के बाद उनके अपने छोटे भाई विक्रमादित्य राजा बने। वहचैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि थी। तभी से अभी तक यहां चैत्र नवरात्र में देवी कालिका और सोमेश्वर महादेव का पूजन आरंभ हुआ, जो आज तक जारी है। प्रति वर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं। ऐसा वामन पुराण में वर्णित है कि चंद्रमा को एक ऋषि ने श्राप दिया। इससे मुक्ति के लिए देव ने इसी पहाड़ी पर अपना तप किया था। इसी वजह से इस पहाड़ का नाम सोमेश्वर हो गया। भर्तृहरि गुफा, परेवादह, फैंटम टीला, टाइटेनिक पहाड़ आदि की मौजूदगी इसे संपूर्णता प्रदान करती है।
लगता मेला, उमड़ती भीड़
हर साल चैत्र नवरात्र के दौरान सोमेश्वर पहाड़ पर मेला लगता है। भर्तृहरि कुटी पर भंडारा और हवन होता है। इसको लेकर लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते है। सबसे ऊंची चोटी पर भारत- नेपाल नो मेंस लैंड पर कालका मंदिर स्थित है।
परेवादह की झील व कबूतर पैदा करते कौतूहल
सोमेश्वर पहाड़ की चढ़ाई के क्रम में परेवादह स्थित है। जहां के प्राकृतिक झरने का पानी इतना स्वच्छ है कि इसमें करीब 20 फीट ऊंचाई से भी मछलियां साफ दिखती हैं। यहीं अनगिनत कबूतरों का झुंड कलरव कर रहा होता है।
पर्यटन स्थल के रूप में विकास की जरूरत
रामनगर प्रखंड से लगभग 28 किमी दूरी पर सोमेश्वर पर्वत स्थित है। फॉरेस्ट सड़क खत्म होने के साथ ही बालू और पत्थरों के बीच चलना पड़ता है। इसी बीच संकरी गली घाटी है, जहां जो नदियों और झीलों से होकर गुजरने वाली पतली राह है। इसके बाद परेवादह क्षेत्र शुरू होता है। पर्यटन प्रेमी शिक्षक संदीप मिश्र व सुजल सिंह ने बताया कि सोमेश्वर पहाड़ पर आज भी भर्तृहरि कुटी विद्यमान है। इसके पाताल गंगा झरना का मीठा जल इसके प्राकृतिक सौंदर्य को बढ़ा देता है। पत्थर से तराशी नाव की आकृति और सीढ़ी नुमा रास्ते से जुड़ी छोटी गुफा है। इसमें पर्यटन स्थल की सारी खूबियां मौजूद है। जरूरत है इसे विकसित करने की।
Input : Dainik Jagran