सीतामढ़ी – अवध बिहारी उपाध्याय। सीतामढ़ी जिला मुख्यालय से आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित पंथपाकड़ गांव अपनी पौराणिक महत्ता को लेकर जाना जाता है। कहा जाता है कि जनकपुरधाम में राम-सीता विवाह के बाद अयोध्या जाते समय मां जानकी की डोली यहांं रुकी थी। इसी स्थान पर पाकड़ के पेड़ के नीचे माता सीता ने रात्रि विश्राम किया था। सवेरे माता सीता ने जो दातून किया उस दातून कूची ने कालांतर में विशाल पाकड़ वृक्ष का रूप ले लिया और उनके कुल्ले से सरोवर बन गया। जनकपुर से बारह कोस (लगभग 38 किलोमीटर) की दूरी पर स्थित है यह पौराणिक स्थल। दूर-दूर से श्रद्धालु यहां दर्शन-पूजन को आते हैं।

माता सीता की पिंडी स्वरूप की पूजा की जाती

वैदेही वल्लभ निकुंज मंदिर के महंत आचार्य सुमन झा का कहना है कि इसी स्थल पर भगवान श्रीराम का महॢष परशुराम से संवाद होने का जिक्र भी लोकगाथाओं में है। यहां भव्य मंदिर, माता सीता की पिंडी, पाकड़ के पेड़ और सरोवर न केवल धाॢमक आस्था बल्कि शोध का भी विषय हैं। यह एकमात्र ऐसा स्थान है जहां माता सीता की पिंडी स्वरूप की पूजा की जाती है।

सालोंभर होते रहते विविध उत्सव

मंदिर के पुजारी दिलीप शाही बताते हैं कि यहां सालोंभर विविध उत्सव होते रहते हैं। राम जन्मोत्सव, जानकी जन्मोत्सव व राम जानकी विवाहोत्सव जैसे मौकों पर विशेष आयोजन यहां होते हैं। इसके अलावा सालोंभर भजन-कीर्तन, अष्टयाम व अन्य धाॢमक अनुष्ठान भी होते रहते हैं। वैशाख में शुक्लपक्ष नवमी को जानकी जन्मोत्सव, चैत शुक्ल पक्ष नवमी तिथि को श्रीराम जन्मोत्सव तथा अगहन शुक्ल पक्ष को विवाह पंचमी यानी रामजानकी विवाहोत्सव का आयोजन होता है।

जानकी जन्मोत्सव पर निकलती चौदह कोसी परिक्रमा

जानकी जन्मोत्सव के अवसर पर माता सीता की डोली अंत:गृह परिक्रमा पर निकलती है। चौदह कोसी परिक्रमा करते हुए यह पंथपाकड़ पहुंचती है। काॢतक अक्षय नवमी को 14 कोस की परिक्रमा के बाद डोली सीतामढ़ी में मां जानकी स्थान पहुंचती है। मां जानकी की जन्मस्थली दर्शन को आने वाले देश-विदेश के पर्यटक पंथपाकड़ पहुंचते हैं।

Input : Dainik Jagran

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