किसान विधेयकों के मुद्दे पर विपक्षी दलों के अलावा देश के करीब 250 छोटे बड़े किसान संगठनों ने 25 सितंबर के राष्ट्रव्यापी बंद को सफल बनाने के लिए कमर कस ली है. कई राज्यों के किसानों में इन विधेयकों को लेकर भारी गुस्सा व्याप्त है. उसे देखते हुए केंद्र एवं राज्य सरकारें बड़े पैमाने पर पुलिस बंदोबस्त कर रही हैं.

किसान नेताओं के मुताबिक इसी पुलिस बंदोबस्त के बीच राष्ट्रीय राजमार्ग और रेल रूट जाम किए जा सकते हैं. अगर सरकार ने उन्हें रोकने या किसानों पर बल प्रयोग करने जैसा कोई कदम उठाया तो केंद्र और संबंधित राज्य सरकार को उसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा.

संसद में पारित किये गये तीनों कृषि बिलों के विरोध में भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौ. राकेश टिकैत ने कहा कि सरकार बहुमत के नशे में चूर है. राज्यसभा में नियमों की अनदेखी कर के अफ़रा-तफ़री में पारित किए गए किसान बिलों का विरोध करने के लिए आज से देश भर में किसान चक्का जाम करेंगे. भारतीय किसान यूनियन ने इसे किसान कर्फ़्यू का नाम भी दिया है.

किसान यूनियन की मुख्य आपत्तियां

1- राज्यसभा में बिना चर्चा के पास हुए बिल. देश की संसद के इतिहास में पहली दुर्भाग्यपूर्ण घटना है कि अन्नदाता से जुड़े तीन कृषि विधेयकों को पारित करते समय न तो कोई चर्चा की और न ही इस पर किसी सांसद को सवाल करने का सवाल करने का अधिकार दिया गया. टिकैत ने कहा कि यह भारत के लोकतन्त्र के अध्याय में काला दिन है.

2- अगर देश के सांसदों को सवाल पूछने का अधिकार नहीं है तो सरकार महामारी के समय में नई संसद बनाकर जनता की कमाई का 20000 करोड रूपया क्यों बर्बाद कर रही है?

3- आज देश की सरकार पीछे के रास्ते से किसानों के समर्थन मूल्य का अधिकार छीनना चाहती है. जिससे देश का किसान बर्बाद हो जायेगा.

4- मण्डी के बाहर खरीद पर कोई शुल्क न होने से देश की मण्डी व्यवस्था समाप्त हो जायेगी. सरकार धीरे-धीरे फसल खरीदी से हाथ खींच लेगी.

5- किसान को बाजार के हवाले छोड़कर देश की खेती को मजबूत नहीं किया जा सकता. इसके परिणाम पूर्व में भी विश्व व्यापार संगठन के रूप में मिले हैं.

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