कहावत है कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है. हाल के दिनों में बिहार में भी ऐसी सूरत उभरती हुई दिख रही है जब राजद नेता तेजस्वी यादव (Tejaswi yadav) यह कहते हुए दिखते हैं कि लोजपा प्रमुख चिराग पासवान (Chirag Paswan) के साथ नाइंसाफी हुई है. जाहिर है तेजस्वी लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान के लिए सहानुभूति तो दिखा रहे हैं, लेकिन साथ ही इसमें नीतीश विरोध की उनकी सियासी रणनीति भी दिख रही है. राजनीतिक जानकार इसके तेजस्वी की चतुराई बता रहे हैं. लेकिन, 23 अक्टूबर से बिहार चुनाव में पीएम मोदी (PM Modi) की एंट्री के साथ ही तस्वीर बदलती हुई नजर आ रही है. दरअसल पीएम मोदी ने पहले राम विलास पासवान को श्रद्धांजलि दी और लगातार नीतीश कुमार के विरोध के बाद भी चिराग पासवान के खिलाफ उन्होंने एक भी शब्द नहीं कहा. जाहिर है यह भाजपा की बड़ी स्ट्रेटेजी मानी जा रही है. इस बीच अब कई राजनीतिक जानकार तेजस्वी की राजनीतिक सूझबूझ पर सवाल उठाने लगे हैं और बिहार के राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा होने लगी है कि चुनाव होने से पहले चिराग के साथ हमदर्दी दिखाकर क्या तेजस्वी ने एक बड़ी रणनीतिक भूल कर दी है?

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक प्रेम कुमार कहते हैं कि तेजस्वी के इस बयान से लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान की वह मुहिम कमजोर होगी जिसमें वे हर हाल में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) को सत्ता से हटाना चाहते हैं. इसके साथ ही चिराग की एक और बात जो अभी चर्चा में है, वह ये कि बीजेपी-जेडीयू की जगह बीजेपी-एलजेपी की सरकार बनने जा रही है. ऐसे में बिहार के मतदाताओं के बीच एक कन्फ्यूजन पहले से है, वहीं, तेजस्वी की इस सहानुभूति ने भी वोटरों को असमंजस में ला दिया है.

तेजस्वी की इस बात से भी साबित हो रहा है कि हाल में ही बिहार भाजपा प्रभारी भूपेंद्र यादव और बीजेपी के नेता नंद किशोर यादव ने कहा कि तेजस्वी जब चिराग की तारीफ करते हैं तो बीजेपी लोजपा के साथ कैसे जा सकती है. प्रेम कुमार कहते हैं कि जाहिर है यह पहले से लग रहा ता कि चिराग के प्रति सहानुभूति वाले तेजस्वी के बयान के बाद बीजेपी-जेडीयू में दूरी घटेगी और वे ज्यादा दम और एकजुटता के साथ चुनावी मैदान में होंगे.

प्रेम कुमार कहते हैं कि सीएम नीतीश को भी यह पता है कि भाजपा का साथ उनके लिए जरूरी है और हाल के दिनों में वह बीजेपी से बढ़ती इसी दूरी से परेशान भी रहे हैं. मतलब ये कि तेजस्वी के बयान से नीतीश की परेशानी कम होगी और सीएम नीतीश को सत्ता से बेदखल करने के चिराग के अभियान को लेकर एक तरह का जनता में भी कन्फ्यूजन होगा. इसके पीछे बड़ा वाजिब कारण यह है कि आरजेडी और बीजेपी के बीच सियासी अदावत बिहार की राजनीति का आधार बन चुकी है.
वहीं, वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं कि तेजस्वी यादव ने चिराग पासवान से जो हमदर्दी दिखाई है इससे आरजेडी को वोटों का कोई फायदा होगा, ऐसा भी नहीं लगता. मांझी के एनडीए में जाने और लोजपा के एनडीए छोड़ने के साथ ही दलित वोट बैंक बंट चुका है. यही नहीं, लोजपा की ओर जाने वाला दलित वोट आरजेडी को फायदा पहुंचाएगा, ऐसा होता तो नहीं लगता है.

प्रेम कुमार यह भी कहते हैं कि कारण यह है कि एलजेपी हर उस सीट पर चुनाव मैदान में हैं जहां जेडीयू चुनाव लड़ रही है. एलजेपी के वोटर अपनी पार्टी को छोड़ कर आरजेडी को वोट करेंगे, ऐसा नहीं लगता. जो लोग बीजेपी से बगावत कर एलजेपी से आ जुड़े हैं वे तो कभी भी आरजेडी के लिए वोट करने-कराने नहीं निकलेंगे- यह भी तय है.

रवि उपाध्याय कहते हैं कि साथ ही यह भी अब स्पष्ट है कि मतदाताओं के बीच यह मैसेज जा रहा है कि एलजेपी को वोट देने का मतलब एक तरह से एनडीए विरोधी महागठबंधन को वोट देना है. यानी लालू विरोधियों को यह स्पष्ट होता जा रहा है और सियासी जमीन पर यह संदेश भी साफ-साफ जा रहा है कि कहीं लोजपा की मदद से राजद की सरकार बिहार में फिर न आ जाए. जाहिर है इससे इससे एनडीए के वोट बैंक और खासकर अपने लिए बीजेपी के वोट बैंक को बिखरने से नीतीश कुमार रोक सकेंगे.

प्रेम कुमार कहते हैं कि अगर चिराग की मदद से लालू राज की वापसी का यह संदेश मतदाताओं के बीच चला गया तो चिराग पासवान अपने मकसद में विफल रहेंगे. हालांकि बिहार में राजनीतिक पलटबाजियां मशहूर पहले से रही हैं, लेकिन फिलहाल तो यही कह सकते हैं कि तेजस्वी ने चिराग से हमदर्दी दिखाकर बड़ी रणनीतिक भूल कर दी है. अपनी सहानुभूति की इस भावना को वे चुनाव तक दबा कर रखते तो उन्हें सरकार बनाने के वक्त राजनीतिक रूप से इसका फायदा मिलता.

बहरहाल, राजनीतिक जानकार यह भी मानते हैं कि काफी कुछ चुनाव नतीजों पर निर्भर रहेगा क्योंकि विधानसभा चुनाव में जीत-हार का अंतर काफी कम रहता है. ऐसे में परसेप्शन अगर चिराग-तेजस्वी की जोड़ी की बनती है तो आने वाले समय में ये दोनों युवा बिहार की सियासत में नया कमाल भी कर सकते हैं. हालांकि चिराग के लिये यहां केंद्र सरकार से बाहर किए जाने का रिस्क भी रहेगा. खैर देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में बिहार की राजनीति क्या मोड़ लेती है.

Source : News18

Muzaffarpur Now – Bihar’s foremost media network, owned by Muzaffarpur Now Brandcom (OPC) PVT LTD