सोशल मीडिया के युग में प्रोपेगेंडा फैलाने वाले लोग पत्रकार बनकर समाज में नफरत और घृणा फैलाने का काम बड़ी तेज़ी से कर रहे है. इनमें बिहार और बिहारियों के प्रति चिढ़ ऱखने वाले लोगो की भी लम्बी लिस्ट है. द प्रिंट नाम का एक प्रोपेगेंडा फैलाने वाला डिजिटल पोर्टल इसमें सबसें आगे खड़ा है. बिहार के प्रति दुष्प्रचार द प्रिंट के प्रमुख एजेंडा में शामिल है. इस बार द प्रिंट की एक पत्रकार मीना कोटवाल छठ पर्व के बढ़ते प्रसिद्धि से इतना घबड़ा गयी कि उसने छठ पर्व को जातिवादी रंग दे दिया. अपनी फ्रस्ट्रेशन को निकालने के लिये मीना कोटवाल ने बनावटी लेख तैयार कर समाज में बिहार के प्रति दुष्प्रचार और जातिवादी ज़हर घोलने का काम किया. बिहार के प्रति नफ़रत रखने वाले लोगों ने मीना के लेख को सराहा और बिहार के प्रति भड़ास निकालने लगें.

बिहार के प्रति घृणा का भाव रखने वाली मीना कोटवाल अकेली पत्रकार नहीं है. द प्रिंट की ही ज्योति यादव ने इसके पूर्व कई फर्जी आलेख से बिहार के प्रति नफ़रत का बीज बोने का काम किया है.

मीना कोटवाल और ज्योति यादव जैसे छोटे पत्रकार हमेशा बिहार के प्रति ऐसी कहानी परोसकर सस्ती प्रसिद्धि पाने के फ़िराक में रहते है. ये प्रोपेगेंडावादी पत्रकार एक ख़ास विचारधारा के लोगों द्वारा पोषित होते है. जिनका एकमात्र उद्देश्य देश में जातिवादी और धर्मिक तनाव की बाते करना है ताकि यह समाज में भेदभाव की स्थिति का ढकोसला बना सकें और अपना हित साध सकें. इसी कड़ी में मीना कोटवाल ने छठ पर्व को जातिवादी और पुरुषवादी बता दिया.

मीना कोटवाल की मानसिकता बेहद संकीर्ण मालूम पड़ती है. मीना कोटवाल जैसे लोगों को बिहार और छठ पर्व को क़रीब से समझने की जरूरत है. छठ समानता और समरसता का पर्व है. समाज के हर वर्ग के लोग की छठ पूजा में एक समान महत्व है बल्कि सच यह है कि बिना दलित समाज के छठ महापर्व संभव भी नहीं है. मीना अपने लेख में जिन जात की दुहाई दे रही है शायद इन्हें नहीं मालूम की बिना उनके द्वारा बनाये गये दौड़ा- सूप के यह पर्व संभव नहीं है. मीना जैसे लोगो को आत्मचिंतन करना चाहिये और बिहार के लोगों से माफ़ी मांगनी चाहिये.

अभिषेक रंजन, मुजफ्फरपुर में जन्में एक पत्रकार है, इन्होंने अपना स्नातक पत्रकारिता...