उत्तर प्रदेश सरकार (UP Government) की ओर से लव जिहाद (Love jihad) के खिलाफ लाए गए अध्यादेश को राज्यपाल से मंजूरी मिल चुकी है. अब यह कानून बन गया है. हालांकि इस कानून की मुखालफत भी काफी हो रही है. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मदन लोकुर (Justice Madan B. Lokur) ने भी इस कानून का विरोध किया है. उन्होंने यह तक कहा कि लव जिहाद कानून चुनने की स्वतंत्रता के खिलाफ है.
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मदन लोकुर ने एक लेक्चर के दौरान कहा, ‘उत्तर प्रदेश में हाल ही में पास हुआ वो अध्यादेश दुर्भाग्यपूर्ण है, जिसमें जबरन, धोखे या बहकावे से धर्मांतरण कर शादी कराने की बात कही गई है. ऐसा इसलिए है क्योंकि यह अध्यादेश चुनने की आजादी, गरिमा और मानवाधिकारों की अनदेखी करता है. मदन लोकुर ने यह भी कहा कि धर्मांतरण संबंधी शादियों के खिलाफ ये कानून सुप्रीम कोर्ट द्वारा चुनने की आजादी और व्यक्ति की गरिमा की रक्षा के लिए विकसित किए गए न्यायशास्त्र का उल्लंघन हैं.
उन्होंने 2018 के हादिया केस का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा, ‘हादिया केस में 2018 में सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिए गए आदेश का क्या हुआ? उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के आदेश हवाले देते हुए कहा कि उसमें कहा गया था कि एक महिला अपनी मर्जी से धर्म परिवर्तन कर इस्लाम अपना सकती है और अपनी पसंद के आदमी से शादी कर सकती है.’
बता दें कि उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने हाल ही में ‘उत्तर प्रदेश विधि विरूद्ध धर्म संपविर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020’ को मंजूरी दे दी है, जिसमें जबरन या धोखे से धर्मांतरण कराये जाने और शादी करने पर दस वर्ष कैद और विभिन्न श्रेणी में 50 हजार रुपये तक जुर्माना लगाया जा सकता है. राज्यपाल की मंजूरी के बाद ‘उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपविर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020’ की अधिसूचना जारी कर दी गयी है.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में पिछले दिनों कैबिनेट की बैठक में इस अध्यादेश को मंजूरी दी गई थी. इसमें विवाह के लिए छल-कपट, प्रलोभन देने या बलपूर्वक धर्मांतरण कराए जाने पर अधिकतम 10 वर्ष कारावास और जुर्माने का प्रावधान किया गया है. राज्य सरकार के प्रवक्ता कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने मंगलवार को बताया था कि इस अध्यादेश के तहत ऐसे धर्म परिवर्तन को अपराध की श्रेणी में लाया जाएगा जो छल-कपट, प्रलोभन, बलपूर्वक या गलत तरीके से प्रभाव डाल कर विवाह या किसी कपट रीति से एक धर्म से दूसरे धर्म में लाने के लिए किया जा रहा हो. इसे गैर जमानती संज्ञेय अपराध की श्रेणी में रखने और उससे संबंधित मुकदमे को प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट की अदालत में विचारणीय बनाए जाने का प्रावधान किया जा रहा है.
Source : News18