बिहार के महावीर कैंसर एंड रिसर्च सेंटर के वरीय वैज्ञानिक डॉ. अरुण कुमार ने बताया कि बिहार के 19 जिलों के 10 लाख लोग आर्सेनिक से प्रभावित हैं। आर्सेनिक को विषों का राजा कहा जाता है। वे भूजल आर्सेनिक विषाक्तता तथा बिहार की जनसंख्या के स्वास्थ्य पर प्रभाव विषय पर बोल रहे थे। सेंटर फॉर ज्योग्राफिकल स्टडीज द्वारा आयोजित वेब लेक्चर सीरीज की 11वीं कड़ी में उन्होंने कई महत्वपूर्ण बातें कहीं।

सीजीएस पटना की निदेशक प्रो. पूर्णिमा शेखर सिंह ने उनका स्वागत किया। गूगल मीट पर आयोजित वर्चुअल कार्यक्रम में डॉ. अरुण कुमार ने अपना व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए आर्सेनिक तथा स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव की विस्तृत जानकारी प्रस्तुत की। उन्होंने बताया पूरे विश्व में कुल 300 मिलियन लोग इससे प्रभावित हैं, जबकि भारत में कुल 20 मिलियन लोग प्रभावित हैं। बिहार में आर्सेनिक से प्रभावित लोगों की जनसंख्या कुल 10 मिलियन के आसपास है, जिसमे 3.3 मिलियन लोग प्रत्यक्ष रूप से इसके प्रभाव में है। बिहार के उत्तरी भाग में गंगा के मैदान के अधिकतर जिले इसकी चपेट में हैं। कहा कि आर्सेनिक मुख्यतः जल द्वारा तथा भोज्य शृंखला के द्वारा मनुष्य के अंदर प्रवेश करता है। इस विषाक्त जल तथा इसके भोजन में उपयोग से मनुष्य विभिन्न प्रकार के रोगों से ग्रसित हो जाते हैं।

यह मुख्यतः हार्मोनल असंतुलन, मानसिक रोग, अस्थमा, डायबिटीज, एनीमिया तथा कैंसर जैसे रोगों का कारक है। गर्भवती महिला द्वारा अधिक आर्सेनिक के सेवन से जन्म लेने वाले बच्चे का इंटेलिजेंस स्तर न्यून हो जाता है। इन्होंने आर्सेनिक से होने वाले विभिन्न कैंसर के रूपों की भी चर्चा की। इनके द्वारा बिहार के विभिन्न गांवों का अध्ययन प्रस्तुत किया गया, जिसमें यह बताया गया कि जो गांव गंगा या उसके सहायक नदियों के आसपास है। उस क्षेत्र में आर्सेनिक की मात्रा अत्यधिक है।

कैसे करें आर्सेनिक के प्रभावों को कम 
वरीय वैज्ञानिक ने बताया कि आर्सेनिक के उपचार के लिए कुछ एंटीऑक्सीडेंट खाद्य पद्दार्थों का सेवन जरूरी है।  हल्दी, आंवला, मशरूम ,तुलसी, अश्वगंधा, जीरा और अजवाइन। उन्होंने बताया कि विटामिन ए, सी और ई के उपयोग से इसके प्रभाव को न्यून किया जा सकता है। सीजीएस निदेशक पूर्णिमा शेखर सिंह ने कहा कि भूजल का अत्यधिक उपयोग न सिर्फ आर्सेनिक बल्कि अन्य आयनिक सांद्रण को भी बढ़ाता है। दिन प्रतिदिन भूजल दूषित होते जा रहा है। अतः आवश्यक है कि वर्षा जल संग्रहण कर उसे दैनिक उपयोग में लाएं। इन्होंने यह भी बताया कि आर्सेनिक के प्रभाव को कम करने के लिए भोज्य पद्दार्थों में एंटीऑक्सीडेंट का सेवन अधिक से अधिक किया जाना चाहिए। हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है कि समाज में इसके लिए जागरूकता फैलाई जाए।

Input: Live Hindustan

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