बिहार की मधुबनी पेंटिंग (Madhubani painting) और मखाना (Makhana) की दुनिया में जो पहचान है, वैसी ही पहचान आने वाले दिनों में चंपारण के मीट (Champaran Meat) की होगी. बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (Bihar Animal Sciences University ) इसके प्रयास में जुटा हुआ है.

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कुलपति डॉ रामेश्वर सिंह ने यूनिवर्सिटी में पशुधन उत्पाद प्रौद्योगिकी विभाग और राष्ट्रीय कृषि उच्चतर शिक्षा परियोजना के संयुक्त तत्वावधान में स्वच्छ मांस उत्पादन एवं प्रसंस्करण तकनीक के दिवसीय ट्रेनिंग में यह जानकारी दे रहे थे. डॉ सिंह ने कहा कि जल्द ही बिहार के चंपारण मीट की जीआइ टैगिंग विश्वविद्यालय द्वारा करा ली जायेगी.

पटना के कई रेस्टोरेंट मालिक, मीट दुकानदार, छात्र व शिक्षकों को मांस को बेहतर ढंग से काटने, स्वच्छता का ध्यान रखने और मांस निकालने के लिए स्वस्थ पशुओं के चयन पर प्रकाश डाला. डीन डॉ जेके प्रसाद और निदेशक अनुसंधान ने हाइजीन की जानकारी दी.

पशुधन उत्पाद प्रौद्योगिकी विभाग की विभागाध्यक्ष-सह-प्रशिक्षण समन्वयक डाॅ सुषमा ने कहा कि तुरंत कटा हुआ मांस खाना वैज्ञानिक तरीके से गलत है. खस्सी को जमीन पर लेटाकर काटने से मिट्टी के संपर्क में आकर कई हानिकारक बैक्टीरिया और वायरस मांस को संक्रमित कर देते हैं.

Source : Prabhat Khabar

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