कहते हैं कि कहीं एक भी पत्ता खड़कता है तो कोतवाल को उसकी जानकारी हो जाती है। मगर शराब से जुड़े मामले में यह कुछ उलटा हो रहा है। कटरा में भी पिछले दिनों कुछ ऐसा ही हुआ। गरीबों की बस्ती दरगाह पर शराब माफिया की नजर गई। कहते हैं ‘साहब’ को नजराना देकर मौखिक लाइसेंस ले लिया, लेकिन किस्मत ने दगा दे दिया। पहले ही दिन बनाई गई मिलावटी शराब ने जहर का रूप ले लिया। सेवन करने वाले एक-एक कर दम तोडऩे लगे।
मामले का राज ना खुले इसके लिए महकमे ने जोर लगाया। इसका छींटा ना पड़े इसलिए मामले को दो दिनों तक गोल-गोल घुमाया गया। मगर इसने इतना तूल पकड़ लिया कि दबी जुबान ही सही, सच स्वीकारना पड़ा। कोतवाल पर कार्रवाई हुई। अब यह सवाल उठने लगा, रोकने वाला ही जहर बिकवाए तो मौत से कौन बचाए?
सबकुछ गंवाकर होश में आए तो क्या किया
उत्तर बिहार की राजनीति में इस समाज का दबदबा रहा है। जिले की राजनीति की दिशा भी यह समाज तय करता है। मगर पिछले विधानसभा चुनाव में जिले से इस समाज को एक भी प्रतिनिधित्व नहीं मिला। कुछ माह तक हार-जीत का विश्लेषण करने पर अहसास हुआ कि समाज में बिखराव इसका मुख्य कारण रहा। बस फिर क्या था। समाज को एकजुट करने की मुहिम शुरू हुई।
विपरीत ध्रुव समझे जाने वाले दो नेता साथ आए। समाज के पुरोधाओं को साधते हुए आगे की रणनीति तय कर ली गई। समाज से जुड़े राज्यभर के हजारों लोगों को एक मंच पर साथ लाया जा रहा है। ताकि यहां से पटना तक संदेश पहुंचे। विधानसभा चुनाव के बाद इस मुहिम को लेकर एक और चर्चा चल रही। कहा जा रहा, पहले ऐसा होता तो चुनाव परिणाम पर फर्क पड़ता। प्रतिनिधित्व तो मिलता। मगर सबकुछ गंवाकर होश में आए…।
Input: Dainik Jagran