मुजफ्फरपुर । डेढ़ वर्ष पूर्व कोरोना पर देश के नाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबोधन से प्रभावित होकर पड़ाव पोखर लेन के मूर्तिकार जयप्रकाश ने उनकी तस्वीर को अपनी कला में उकेरने का निश्चय किया। देर रात तक विचार करने के बाद इस बात से बेखबर हो कि उसकी बाजार में मांग होगी या नहीं उन्होंने मोदी बैंक गुल्लक बनानी शुरू की। अब इसका फलक राष्ट्रीय हो गया है। बक्सर और बनारस से दिल्ली तथा कोलकाता तक के लोग इसे खरीदने के लिए आ रहे हैैं। अब तक उन्होंने 350 गुल्लक तैयार कर बिक्री कर चुके हैैं।

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जयप्रकाश बताते हैं कि 22 मार्च 2020 को टीवी पर प्रधानमंत्री का संबोधन देखा। इसमें प्रधानमंत्री ने आम लोगों के दर्द को महसूस किया और घर में रहकर संक्रमण से बचाव करने की सीख दी। इस दौरान उनका चेहरा बार-बार टीवी स्क्रीन पर आ रहा था तभी दिमाग में आया कि प्रधानमंत्री के चेहरे को अपनी कला में उकेरा जाए। अगले दिन सुबह होते ही उन्होंने मोबाइल पर नरेंद्र मोदी की तस्वीर देखी और उसे दिमाग में स्थापित कर निर्माण कार्य में जुट गए। एक महीने तक दिन में और देर रात तक मेहनत के बाद नरेंद्र मोदी की तस्वीर वाली गुल्लक बनकर तैयार हो गई। इसका नाम मोदी बैंक गुल्लक रखा। करीब सप्ताहभर बाद एक ग्राहक ने इसकी खरीदारी की, लेकिन मेहनत के हिसाब से कीमत नहीं मिली। मात्र 800 रुपये में महीनेभर की मेहनत के बाद वह गुल्लक बिकी। उसपर 700 से अधिक लागत और स्वयं की महीनेभर की मेहनत भी थी। इसके बाद उन्होंने नरेंद्र मोदी की तस्वीर की डाई तैयार की। अब वे चार दिनों में दो मोदी बैंक गुल्लक तैयार कर लेते हैं। वे नरेंद्र मोदी को अपना आदर्श मानते हैं। अब भी वे देर रात तक जागकर मोदी बैंक गुल्लक को तैयार करते हैं।

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पिता कन्हाई पंडित और अपने दादा के समय से ही जयप्रकाश मूर्तिकारी का कार्य कर रहे हैं। अब उनके पुत्र पीयूष, पुत्री अर्पिता और पिता भी इस कार्य में सहयोग करते हैं। वह बताते हैं कि मेहनत के अनुसार कमाई नहीं हो रही है। यदि आर्थिक मदद मिलती तो बड़े पैमाने पर इसका निर्माण शुरू करते। उन्होंने इसके लिए जिला प्रशासन और सरकार से मदद की गुहार लगाई है। वह शहीद भगत सिंह और सरदार पटेल की तस्वीरों को भी गुल्लक में उकेरने का प्रयास कर रहे हैं।

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गुल्लक निर्माण में इन सामग्री का करते उपयोग :

जयप्रकाश मोदी गुल्लक बनाने में मिट्टी, फेविकोल, गोइठा, पुआल और पीओपी का इस्तेमाल करते हैैं। मिट्टी को पकाकर गुल्लक तैयार की जाती है। इसके बाद अलग-अलग रंगों से उसे सजाकर प्लास्टिक फ्रेम का चश्मा तैयार करते हैं। पूरी प्रक्रिया होने में चार से पांच दिनों का समय लग जाता है। तैयार होने के क्रम में कई गुल्लक नष्ट भी हो जाती हैैं। इससे नुकसान भी उठाना पड़ता है।

Source : Dainik Jagran

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