दरभंगा. मिथिलांचल का दिल’ कहा जाने वाला दरभंगा अपने समृद्ध अतीत और प्रसिद्ध दरभंगा राज के लिए जाना जाता है. देश के रजवाड़ों में दरभंगा राज का हमेशा अलग स्थान रहा है. ये रियासत बिहार के मिथिला और बंगाल के कुछ इलाकों में कई किलोमीटर के दायरे तक फैला था. दरभंगा राज के आखिरी महाराज कामेश्वर सिंह तो अपनी शान-शौकत के लिए पूरी दुनिया में विख्यात थे. इससे प्रभावित होकर अंग्रेजों ने उन्हें महाराजाधिराज की उपाधि दी थी.  1 अक्टूबर, 1962 को महाराज कामेश्वर सिंह बहादुर का शरीर पंचतत्व में विलिन हुआ था.

महाराज कामेश्वर सिंह

जब जब भारत के दानवीरों की बात की जायेगी, तो उनमें दरभंगा राज का नाम स्वर्णिम अक्षरों से लिखा जाएगा. आज हमें दरभंगा राजपरिवार की शिक्षा, संस्कृति, संगीत को सहेजने और उदार दानशीलता के बारे में अवश्य जानना चाहिए. दरभंगा के महाराजा रामेश्वर सिंह बहादुर, शिक्षा के प्रबल समर्थक और कला अनुरागी थे. वे पंडित मदन मोहन मालवीय के अनन्य समर्थक थे.

दानवीर दरभंगा महाराज

दरभंगा महाराज ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के निर्माण के लिए पचास लाख रुपये का दान दिए थे.

पटना में अपना दरभंगा महल पटना विश्वविद्यालय को दान दिया.

कलकत्ता विश्वविद्यालय, प्रयाग विश्वविद्यालय, पटना विश्वविद्यालय अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के निर्माण में आर्थिक योगदान.

महाराजा कामेश्वर सिंह ने दरभंगा का अपना महल ‘आनंद बाग महल’ और पुस्तकालय संस्कृत विश्वविद्यालय को दान दे दिया.

आज का ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय दरभंगा राज के भवन में ही स्थापित है.

दरभंगा राज का वैभव

दरभंगा राज का वैभव पूरे हिन्दुस्तान में प्रसिद्ध था. दरभंगा महाराज के घर के अंदर तक रेल चलती थी. प्राइवेट प्लेन था. दूसरे विश्वयुद्ध के वक्त दरभंगा महाराज ने एयरफोर्स को तीन फाइटर प्लेन दिए थे. ये है दरभंगा राज का स्वर्णिम इतिहास. दरभंगा महाराज कामेश्वर सिंह की शानो ओ शौकत ऐसी थी कि ना सिर्फ देशभर के तमाम रजवाड़े उनके यहां कार्यक्रम में पहुंचे थे, बल्कि ब्रिटिश वायसराय से लेकर लंदन के लोग भी शामिल होना चाहते थे.

बकिंघम पैलेस की तरह था घर

दरभंगा राज के सबसे विख्यात महाराजा कामेश्वर सिंह के ख्याति आज भी चर्चा का विषय है. ललित नारायण मिश्रा विश्वविद्यालय भवन के ठीक बगल में मना नरगोना पैलेस अपने आप में अनूठा है. सफेद संगमरमर से बना ये भवन लंदन के बकिंघम पैलेस की याद दिलाता है. कहा जाता है कि उस समय महाराजा कामेश्वर सिंह ने इस पैलेस का निर्माण अपने निवास स्थान के रूप में कराया था.

दरभंगा महाराज के घर तक चलती थी ट्रेन

बिहार की पहली ट्रेन जो समस्तीपुर से खुली थी, उसका अंतिम स्टेशन महाराजा कामेश्वर सिंह के निवास स्थान नरगोना पैलेस तक आती थी. नरगोना पैलेस के ठीक बगल में स्टेशन का प्लेटफार्म आज भी लोगो के लिए कौतूहल का विषय है. बिहार में पहली रेल पटरी 1874 में दरभंगा महाराज के पहल और दान से ही बनी थी.

दरभंगा में देश का दूसरा लाल किला !

दरभंगा में भी लाल किला है. जो पूरी तरह दिल्ली के लाल किले के तर्ज पर बनाया गया है. दरभंगा महाराज ने 85 एकड़ जमीन पर एक आलीशान किला के निर्माण किया था. 1934 के भूकंप के बाद किले का काम शुरू हुआ था जो सालों तक चलता रहा. किले के तीन तरफ लगभग 90 फीट ऊंची दीवार थी. जो लाल किले से ऊंची है. दरभंगा का किला लाल किला जैसा दिखता था. तभी से इसे दरभंगा का लाल किला कहा जाने लगा.

विद्वता का डंका, चिता पर मंदिर

दरभंगा महाराज शास्त्रों के साथ तंत्र विद्या के भी विद्वान थे. इसलिए दरभंगा में महाराजाओं के चिता पर कई मंदिर बनाए गए हैं. हर महाराजा के चिताओं के ऊपर एक मंदिर का निर्माण कराया गया जो ना सिर्फ भव्य है बल्कि श्रद्धा का प्रमुख केंद्र है. दरभंगा में महाराजा रामेश्वर सिंह की चिता पर मां काली की मंदिर का निर्माण हुआ है, जो मिथिला में सिद्ध मंदिर है.

शिक्षा, संस्कृति और संगीत के प्रेमी थे दरभंगा महाराज

महाराजा कामेश्वर सिंह ने कला, संस्कृति और कलाकारों को भी खूब बढ़ावा दिया. मधुबनी पेंटिंग कला इसका उदाहरण है. दरभंगा महाराज की पूरी विरासत आज खंडहरों में तब्दील हो रही है. मधुबनी के राजनगर का किला, जो अपने आप में स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है, आज बर्बादी की कगार पर है. ऐसे में सरकार के साथ-साथ आम लोगों को भी इन विरासत को बचाने के लिए प्रयास करना चाहिए.

Source : News18

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