साल 1962 में भारत और चीन के युद्ध के दौरान एक और यादगार जंग लड़ी गई थी, जिसने भारतीय इतिहास में मेजर शैतान सिंह और उनके साथियों की बहादुरी का किस्सा जोड़ दिया. यह थी रेजांग ला की जंग, जहां भारत के 120 बहादुरों ने अचानक हमला करने वाली चीनी सेना के 1300 सैनिकों को मार गिराया था. गुरुवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह रेजांग ला स्मारक पहुंचकर शहीदों को श्रद्धांजलि देंगे. मेजर शैतान सिंह और 120 सैनिकों की उनकी टोली को दुश्मनों से लोहा लिए 59 साल गुजर गए, लेकिन उस कहानी को आज भी उसी जोश के साथ सुनाया जाता है.
पहले जानते हैं मेजर शैतान सिंह के बारे में
मेजर शैतान सिंह 13 कुमाऊं की चार्ली कंपनी का नेतृत्व कर रहे थे. उन्होंने 18 नवंबर 1962 को चीनी सेना की उस टुकड़ी का बहादुरी से सामना किया, जो संख्या और हथियारों की मात्रा के मामले में भारतीय सेना पर भारी पड़ रही थी. उस दौरान मेजर सिंह से यह भी कहा गया था कि वे चाहें, तो चौकी से पीछे भी हट सकते हैं, लेकिन मेजर ने अपने साथियों में जोश फूंका और समझदारी से लड़ने के निर्देश दिए. नतीजा यह हुआ कि भारत ने उनके नेतृत्व में चीनी सेना का जमकर मुकाबला किया. मेजर सिंह को मरणोपरांत परमवीर चक्र से नवाजा गया.
क्या हुआ था उस दिन
18 नवंबर 1962 को सुबह के चार बज रहे थे और चीनी सेना के करीब 2000 जवानों ने लगभग 114-120 सैनिकों की टुकड़ी पर हमला कर दिया. ठंड की मार और दुश्मनों की तरफ से शुरू हुई गोलियों की बौछार का सामना भारतीय सेना ने बड़ी बहादुरी से किया. कम हथियारों को देखते हुए रणनीति बनाई गई कि जब चीनी सैनिक फायरिंग रेंज में आएं, तभी उन पर गोली दागी जाए. मेजर सिंह ने जवानों को बताया कि एक फायरिंग में एक चीनी सैनिक को मार गिराओ. इस रणनीति पर काम करते हुए भारतीय सेना ने चीनी पक्ष को खदेड़ दिया और उस समय तक सभी भारतीय सैनिक सुरक्षित थे.
पैरों में बंदूक बांधकर लड़े और शान से शहीद हो गए
करीब 18 घंटों तक चली इस जंग में भारतीय सेना के 114 जवान शहीद हुए. गोलीबारी के दौरान पलटन ने संदेश दिया कि चीनी पक्ष को खदेड़ दिया गया है. हालांकि, कुछ देर बाद ही चीनी सेना ने गोला दाग दिया. इस दौरान हुई जमकर गोलीबारी और बमबारी में भारतीय सेना के तीन बंकर तबाह हुए. बमबारी में ही मेजर सिंह के हाथ में शेल का टुकड़ा आकर लग गया और वो घायल हो गए. साथी जवानों के समझाने के बावजूद वो लड़ते रहे. उन्होंने मशीन गन मंगाकर उसके ट्रिगर को पैर पर बंधवाया.
अब घायल मेजर पैरों की मदद से दुश्मनों पर गोलियां बरसा रहे थे. हालांकि, तब तक काफी खून बहने के चलते उनकी हालत बिगड़ती गई. जंग में मौजूद सूबेदार रामचंद्र यादव ने भी बड़ी भूमिका निभाई. वो मेजर को अपनी पीठ पर बांधकर बर्फ में लुढ़क गए. बाद में उन्होंने मेजर सिंह को पत्थर के सहारे लिटाया. कुछ समय बाद ही मेजर दुनिया को अलविदा कह गए. इस जंग में 114 भारतीय जवान शहीद हुए, 5 को युद्धबंदी बनाया, लेकिन भारत ने भी करीब 1300 चीनी सैनिकों को ढेर कर दिया था.
Source : News18
(मुजफ्फरपुर नाउ के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)