स्वास्थ्य विभाग ने मोतियाबिंद का ऑपरेशन करनेवाले 3 निजी अस्पतालों काे पिछले 3 साल में अनुदान के तौर पर 52 लाख रुपए बांटे। वहीं यह जानकर आप हैरान हो जाएंगे कि अंधापन निवारण जागरूकता के लिए एसकेएमसीएच व सदर अस्पताल को करोड़ों रुपए मिले। इसके बावजूद सदर अस्पताल में पिछले 11 वर्षाें में माेतियाबिंद का एक भी ऑपरेशन नहीं हुआ। मुजफ्फरपुर के सांसद अजय निषाद ने गुरुवार को शून्यकाल में आई हॉस्पिटल में ऑपरेशन के बाद 15 लोगों की आंख निकाले जाने का मुद्दा उठाया। कहा कि ऑपरेशन के बाद इन लाेगाें की आंखें चली गई।
लेकिन, आई हॉस्पिटल 1973 से अब तक 3 लाख 67 हजार लाेगाें का सफल ऑपरेशन कर चुका है। संस्था प्रत्येक रविवार काे फ्री कैंप लगाती है। ओपीडी में अब तक 40 लाख लाेगाें का इलाज हाे चुका है। मुजफ्फरपुर के सरकारी अस्पतालों में 2010 के बाद से आंख का ऑपरेशन नहीं हुआ है। इस कारण गरीब वर्ग के लोग आंख के ऑपरेशन के लिए आई हॉस्पिटल ही पहुंचते हैं। ऐसे में इस हाॅस्पिटल काे शीघ्र खाेलवाया जाए।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि सरकारी अस्पतालाें में राशि व सुविधाएं रहने के बावजूद ऑपरेशन आखिर क्यों नहीं हो रहे हैं? सदन में सांसद ने खुद बताया कि 2010 के बाद सरकारी अस्पतालाें में मोतियाबिंद का ऑपरेशन नहीं हुआ है। आखिर ऐसे में सवाल यह है कि सरकारी अस्पतालाें में माेतियाबिंद का ऑपरेशन हाे इसे सुनिश्चित काैन कराएगा। जबकि, तीनाें निजी अस्पतालाें काे दिए गए 52 लाख रुपए के अनुदान के बाद जिन मरीजों का ऑपरेशन हुआ उनका भौतिक सत्यापन कराया गया या नहीं, इस पर अधिकारी भी कुछ बोलने के लिए तैयार नहीं हैं। आई हाॅस्पिटल वाली घटना के बाद अपर निदेशक ने सीएस से रिपोर्ट मांगी है।
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सीएस से अपडेट लेकर डीएम से मिलेंगे सांसद
दैनिक भास्कर ने पूछा सवाल तो सांसद बोले, सीएस से अपडेट लेकर डीएम से करेंगे बात… सरकारी अस्पतालों में ऑपरेशन हो ये भी सुनिश्चित कराएंगे
पिछले 3 वर्षों में विभाग ने मोतियाबिंद का ऑपरेशन करनेवाले 3 निजी अस्पतालों को बांटा 52 लाख का अनुदान
आई हॉस्पिटल के करीब 2000 मरीजों का अता-पता नहीं होने की वजह से रोका गया है अनुदान, नया करार भी नहीं
तीन अस्पतालों को दिए अनुदान को लेकर एसीएमओ से मांगी गई रिपोर्ट
आई हॉस्पिटल के अलावा कुमार फाउंडेशन ट्रस्ट अखाड़ाघाट, सुनैना मेमोरियल आई हॉस्पिटल बोचहां व विश्व स्वाति ईपीलिप्सी मिशन सेवाश्रम अघोरिया बाजार को मोतियाबिंद ऑपरेशन के लिए अनुदान राशि दी गई थी। हालांकि, आई हॉस्पिटल में करीब 2000 मरीजों के नाम-पते का सत्यापन न होने से उसका अनुदान रोक जारी वर्ष में उससे करार नहीं किया गया। लेकिन, अन्य तीनाें में हुए ऑपरेशन का सत्यापन भी नहीं हुआ। अंधापन निवारण कार्यक्रम के स्टेट प्रोग्राम ऑफिसर डॉम् हरीशचंद्र ओझा ने कहा कि जारी वित्तीय वर्ष में मुजफ्फरपुर आई हॉस्पिटल से करार नहीं होने के कारण उसकी जांच नहीं की गई। इस कारण यह घटना हुई। उन 3 अस्पतालों के बारे में एसीएमओ से पूरी रिपोर्ट मांगी गई है।
यकीन कीजिए, अंधापन निवारण जागरूकता के लिए मिले करोड़ों
जिले में अंधापन निवारण के लिए राज्य सरकार से सदर अस्पताल और एसकेएमसीएच को करोड़ों के फंड मिले। लेकिन, दोनों अस्पतालों में अंधापन निवारण के लिए सिर्फ खानापूर्ति की जाती है। साल में एक बार जागरूकता के लिए अंधापन निवारण पखवाड़ा के तहत रैली, सेमिनार कर रुपए खर्च दिखा दिए जाते हैं। सदर अस्पताल में 2010 के बाद से आंख की सर्जरी बंद है। जबकि, यहां 2 आई स्पेशलिस्ट के अलावा पारा मेडिकल स्टाफ और सभी प्रकार के इंस्ट्रूमेंट उपलब्ध हैं। तर्क दिया जाता है कि ऑपरेशन थिएटर नहीं होने के कारण सदर अस्पताल में सर्जरी नहीं की जा रही है।
मुझे तो अब पता चला, सरकारी अस्पतालों में नहीं हो रहा आंखों का ऑपरेशन : निषाद
सांसद अजय निषाद ने बताया कि आई हॉस्पिटल की जानकारी लेने के दौरान पहली बार सूचना मिली कि सरकारी अस्पतालों में आंख का ऑपरेशन 2010 के बाद से नहीं हुआ है। अब इसके लिए विशेष पहल करेंगे। सीएस से सरकारी अस्पतालों में इसके लिए उपलब्ध डॉक्टर व चिकित्सीय सुविधाओं की जानकारी लेंगे और पूछेंगे कि सब उपलब्ध रहने पर भी ऑपरेशन क्यों नहीं हाे रहा। पूरी जानकारी लेने के बाद डीएम से मिलकर उन्हें सरकारी अस्पतालों में आंख का इलाज व ऑपरेशन शुरू कराने का आग्रह करेंगे। साथ ही बताएंगे कि आखिर किस प्रकार चिकित्सक व सुविधाएं उपलब्ध रहने के बाद भी उसका उपयोग नहीं किया जा रहा। वर्षों से डाॅक्टर कैसे बैठ कर वेतन ले रहे हैं।
Source : Dainik Bhaskar
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