यूक्रेन पर रूस के चौतरफा आक्रमण ने दुनिया भर से प्रतिबंधों की लहर पैदा कर दी है और वैश्विक नेताओं ने क्रेमलिन पर दबाव बढ़ाने की मांग की है. शुक्रवार को, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और उनके विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव पर प्रतिबंध लगाकर रूस पर दबाव बढ़ाने की कोशिश की.

रूस के खिलाफ UNSC में वोटिंग से भारत ने किया किनारा

लेकिन यूक्रेन में रूस की कार्रवाई पर पश्चिमी देशों की बढ़ती प्रतिक्रिया ने भारत को एक सावधान स्थिति में लाकर खड़ा दिया है. जैसे-जैसे यूक्रेन संकट गहराता जा रहा है, भारत के लिए असली समस्या यह है कि वह रूस के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों को कैसे आगे बढ़ाता है. भारत के मॉस्को के साथ ऐतिहासिक रूप से घनिष्ठ संबंध हैं, और वह रूसी हथियारों का एक प्रमुख खरीदार है. इसलिए, भारत ने अब तक पश्चिमी देशों और अमेरिका द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों से खुद को दूर रखा है.

शुक्रवार को भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक प्रस्ताव पर मतदान के दौरान भाग नहीं लिया था, जिसमें कहा गया था कि देशों का समूह यूक्रेन के खिलाफ रूस की “आक्रामकता” की “सबसे मजबूत शब्दों में निंदा करता है.” इस प्रस्ताव में रूसी सैनिकों की यूक्रेन से तत्काल वापसी की मांग की गई थी. नई दिल्ली को इस बात का पूरा आभाष है कि रूस पर अमेरिकी प्रतिबंधों का भारत की रक्षा आपूर्ति पर गंभीर प्रभाव पड़ने की संभावना है.

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) डेटाबेस के अनुसार, रूस पिछले तीन दशकों में भारत को हथियारों की आपूर्ति करने वाला प्रमुख देश रहा है. SIPRI के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले कुछ वर्षों में रूसी हथियारों पर भारत की निर्भरता में गिरावट आई है. यह काफी हद तक भारत के अपने हथियारों के आयात को व्यापक आधार देने के फैसले के कारण है. पिछले 15 वर्षों में भारत हथियारों के लिए अमेरिका, फ्रांस और इजरायल की ओर तेजी से बढ़ा है.

हथियारों की खरीद के लिए रूस अब भी भारत की पहली पसंद

हालांकि, 15 लाख की मजबूत भारतीय सेना द्वारा उपयोग की जाने वाली 60% से अधिक हथियार प्रणालियां अभी भी रूसी मूल की हैं. डेटा से पता चलता है कि 2016 से 2020 के बीच भारत के हथियारों के आयात में लगभग आधा हिस्सा रूस का है. भारतीय सेना के 3,000 से अधिक मुख्य युद्धक टैंकों में से 90% से अधिक रूसी T-72 और T-90S हैं. भारत और 464 रूसी T-90MS टैंक खरीदने के लिए रूस के साथ बातचीत कर रहा है.

भारत भले ही अब हथियारों की खरीद के लिए अमेरिका, फ्रांस और इजरायल की ओर बढ़ा हो, लेकिन रूस अब भी नई दिल्ली की पहली पसंद बना हुआ है. यह इसलिए है क्योंकि अन्य देशों की अपेक्षा रूस हथियारों के मूल्य और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को लेकर भारत के लिए ज्यादा उदार है. विशेषज्ञों के अनुसार, UNSC में मतदान से दूर रहने के भारत के निर्णय का अर्थ मॉस्को के लिए समर्थन नहीं है. बल्कि ऊर्जा, हथियारों और पड़ोसियों के साथ संघर्ष में समर्थन के लिए अपने शीत युद्ध सहयोगी पर नई दिल्ली की निर्भरता को दर्शाता है.

अतीत में कश्मीर मुद्दे पर भारत को मिलता रहा है रूस का समर्थन

अतीत में, पाकिस्तान के साथ कश्मीर मुद्दे पर भारत को रूस का समर्थन मिल चुका है. पाकिस्तान के खिलाफ कश्मीर मुद्दे को लेकर भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस की वीटो शक्ति पर निर्भर रहा है. यूक्रेन में युद्ध ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन के साथ भारत के सामने चुनौतियां भी बढ़ा दी हैं. पाकिस्तान और चीन दोनों को रूस के पक्ष में देखा जाता है, और भारत का मानना ​​​​है कि मॉस्को सीमा मुद्दे पर बीजिंग के सख्त रुख को बदलने में उसकी सहायता कर सकता है. इसके अलावा S-400 मिसाइल सिस्टम के लिए भी भारत की निर्भरता रूस पर है.

Source : News18

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