सिर्फ 20 पैसों के लिए 10 साल कानूनी लड़ाई लड़ी और जीते भी। एक उपभोक्ता के हित से खिलवाड़ पर कासगंज के गांव कुढ़ार के पोस्टमैन राजबहादुर का ये जज्बा सभी के लिए प्रेरणा का सबब है। यही नहीं वे अब भी इस तरह की लड़ाइयां लड़ रहे हैं।

दिल्ली की तीस हजारी अदालत में लड़ा मुकदमा

बीते वर्ष 1987 की है। राजबहादुर बताते हैं कि वह दिल्ली में निजी नौकरी करते थे। एक दिन कुतुबमीनार देखने जाने के लिए डीटीसी बस से सफर कर रहे थे। तभी बस कंडक्टर महेश चंद्र ने उनसे 20 पैसे अधिक वसूल लिए। उन्होंने विरोध किया तो उसने अभद्रता की। राजबहादुर बताते हैं कि तभी तीस हजारी कोर्ट में मुकदमा दायर किया। डीटीसी के खिलाफ मुकदमा लड़ा। 10 साल तक मामला चला। डीटीसी प्रबंधन ने कंडक्टर के खिलाफ कार्यवाही की। साथ ही अदालत में भी कार्यवाही रिपोर्ट पेश की। इससे एक उपभोक्ता के रूप में हमारी जीत हुई।

बाइक खरीद पर ज्यादा रकम वसूली का विरोध

राजबहादुर ने बताया कि पिछले वर्ष एक बाइक शोरूम से नई बाइक खरीदते समय उनसे सात हजार रुपये अधिक वसूले गए। इस पर उन्होंने बाइक एजेंसी संचालक से शिकायत की, लेकिन उनकी कोई बात नहीं सुनी गई। इस पर बाइक एजेंसी संचालक के खिलाफ कोतवाली में मुकदमा दर्ज कराया। इस पर उन्होंने कानूनी लड़ाई लड़ने का फैसला किया। अब भी वह इस मामले को लेकर अदालत में कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्हें भरोसा है कि इस मामले में भी उनकी जीत होगी।

हजारों रुपये खर्च हुए

राजबहादुर को मुकदमे में पैरवी के लिए कई बार दिल्ली आना-जाना पड़ा। वह बताते हैं कि मुकदमा लड़ने में खर्च भी करना पड़ा था, लेकिन जब मुकदमे का निस्तारण हुआ और उसमें सफलता मिली तो लगा कि मेहनत की भरपाई हो गई। इस मुकदमे ने जीवन में काफी अनुभव दिया था।

अपने हक का इस्तेमाल

राजबहादुर बताते हैं कि एक उपभोक्ता होने के नाते मुझे जो अधिकार मिले हैं, उनका मैं इस्तेमाल करता हूं। किसी भी वस्तु को खरीदते समय हमें उसकी रसीद जरूर लेनी चाहिए, ताकि जरूरत पड़ने पर हम प्रमाण के तौर पर उसे पेश कर सकें। वही प्रमाण कानूनी लाभ दिलाने में मदद करते हैं।

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बीमा कंपनी से क्लेम के लिए 26 वर्ष लंबा संघर्ष

कोतवाली नगर के भगीपुर निवासी सूरजपाल का परिवार बीमा कंपनी से क्लेम के लिए26 वर्षों से मुकदमा लड़ रहा है। सूरजपाल के पास एक ट्रक था जिसका नेशनल इंश्योरेंस कंपनी से बीमा था। ट्रक दुर्घटनाग्रस्त हुआ जिस की मरम्मत पर 75 हजार रुपये खर्च हुए। उन्होंने बीमा कंपनी में दावा किया, लेकिन 14 हजार रुपये ही मिले। इसके बाद 17 सितंबर, 1996 को उपभोक्ता फोरम में शिकायत की। केस लखनऊ ट्रांसफर कर दिया। कुछ दिन वहां सुनवाई के बाद मुकदमा दोबारा एटा के फोरम में भेज दिया। वर्ष 2001 में सूरजपाल का निधन हो गया। अब उनकी बुजुर्ग पत्नी और बेटा संघर्ष कर रहे हैं।

Source : Hindustan

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