मुजफ्फरपुर व आसपास के जिलों में बच्चों के लिए कहर बनी एईएस (एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम) अब इंसेफलोपैथी के नाम से जानी जाएगी। दिल्ली से आई स्वास्थ्य मंत्रलय की टीम ने माना कि बच्चों को बीमारी गर्मी में हो रही है। ज्यादा कुपोषित बच्चे इसकी चपेट में आ रहे हैं। इसपर अगले साल भी शोध जारी रहेगा। शोध का प्रथम आधार होगा गर्मी व कुपोषण। इंडियन कांउसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने इंसेफलोपैथी को लेकर नए साल के लिए गाइडलाइन जारी कर दी है।

दिल्ली की कार्यशाला में शोधपत्र की प्रस्तुति : बीमारी को लेकर 19 जुलाई 2019 को दिल्ली आइसीएमआर मुख्यालय में रिसर्च एवं आगामी लाइन ऑफ एक्शन पर कार्यशाला हुई। इसमें आइसीएमआर के निदेशक डॉ.एमवी मुरेकर, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोलॉजी यानी निमहांस के डॉ. वी रवि, सेंट्रल टीम लीडर एम्स दिल्ली के डॉ.अरुण कुमार सिंह, सीएमसी वेल्लोर के डॉ. टी जैकब जॉन, एनसीडीसी दिल्ली के डॉ.आकाश श्रीवास्तव, एसकेएमसीएच के शिशु रोग विभागाध्यक्ष डॉ.गोपाल शंकर साहनी, एम्स पटना के डॉ.लोकेश कुमार तिवारी शामिल हुए। सभी ने इस बीमारी पर अपने शोध पत्र को प्रस्तुत किया। कार्यशाला में शामिल देश के करीब 60 चिकित्सकों ने अपनी राय दी।

अगले साल के लिए एडवाइजरी

’ बिहार सरकार एसकेएमसीएच के शिशु विभाग के चिकित्सकों को आइसीयू का विशेष प्रशिक्षण दिलाएगी। प्रशिक्षणएम्स पटना व दिल्ली और सीएमसी यानी क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज वेल्लोर की टीम देगी।

’ पीआइसीयू में विशेष जांच की व्यवस्था हो ताकि पैथोलॉजिकल जांच के लिए बाहर नहीं जाना पड़े।

’ ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल में भी जरूरी बदलाव हो। जागरूकता अभियान में यूनिसेफ जैसी संस्थाओं से समन्वय बने।

’ इलाज व जागरूकता के लिए स्वास्थ्य विभाग एजेंसियों से समन्वय बनाए

बीमारी की जड़ गर्मी और कुपोषण पर किया जाएगा शोध, कुपोषण को लेकर सालों भर चलेगा जागरूकता अभियान

दिल्ली कार्यशाला में शामिल सभी विशेषज्ञ चिकित्सकों ने माना कि यह बीमारी संक्रमण वाली नहीं है। इसलिए यह एईएस नहीं कहलाएगी। बल्कि इंसेफलोपैथी के नाम से जानी जाएगी। इसके बाद इंडियन कांउसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की ओर से नई एडवाइजरी जारी हुई है। डॉ.गोपाल शंकर साहनी, विभागाध्यक्ष, शिशु रोग, एसकेएमसीएच

Input : Dainik Jagran

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