भारतवर्ष में शक्ति साधना के कुछ विशिष्ट स्थल हैं जो शक्तिपीठ के नाम से जाने जाते हैं। असम राज्य के गुवाहाटी में एक पहाड़ी पर बना कामाख्या देवी (Kamakhya Devi) का मंदिर (Temple) ऐसा ही एक शक्तिपीठ है जो महाशक्तिपीठ कहलाता है। यहाँ पर माता सती का योनि भाग गिरा था इसलिए यहाँ देवी के योनि भाग की ही पूजा की जाती है,जो कि एक योनि के आकार की शिला के रूप में विराजमान है। ये शिला हमेशा फूलों से ढकी रहती है और यहाँ से हमेशा जल निकलता रहता है। योनि भाग के यहां होने से माता यहां रजस्वला भी होती हैं इस मंदिर में दुर्गा या मां भगवती की कोई मूर्ति या चित्र नहीं है। यहाँ नीलप्रस्तरमय योनि माता कामाख्या साक्षात निवास करती हैं। जो मनुष्य इस शिला का पूजन,दर्शन,स्पर्श करते हैं वे देवी कृपा तथा मोक्ष के साथ माँ भगवती का सानिध्य प्राप्त करते हैं व देवी के दर्शन,पूजन से विविध मनोकामनाओं की पूर्ती होती है।
कामाख्या मंदिर से कुछ दूरी पर उमानंद भैरव का मंदिर है,उमानंद भैरव ही इस शक्तिपीठ के भैरव हैं।यह मंदिर ब्रह्मपुत्र नदी के बीच में टापू पर स्थित है।मान्यता है कि इनके दर्शन के बिना कामाख्या देवी की यात्रा अधूरी मानी जाती है।अन्य शक्तिपीठों की अपेक्षा यह मंदिर थोड़ा भिन्न है क्योंकि यह स्थल तंत्र साधना के लिए भी बहुत प्रसिद्द है।महाकुंभ कहे जाने वाले इस मेले के दौरान तांत्रिक शक्तियों को काफी महत्व दिया जाता है।यहाँ सैंकड़ों तांत्रिक अपने एकांतवास से बाहर आते हैं और अपनी शक्तियों का प्रदर्शन करते हैं।
ऋतुमती होने का पर्व
कामाख्या देवी मंदिर में हर साल जून के महीने में यह मेला उस वक्त आयोजित किया जाता है जब माँ कामाख्या ऋतुमती रहती हैं।इस दौरान माँ अपने मासिक धर्म के वार्षिक चक्र से गुजरती है। इस अद्भुत दैवीय घटना पर्व के दौरान माँ भगवती के गर्भ गृह के कपाट स्वतः ही बंद हो जाते हैं और उनके दर्शन भी इस दौरान बंद हो जाते हैं।तीन दिन बाद, देवी कामाख्या की मूर्ति को स्नान कराया जाता है और अन्य अनुष्ठान किये जाते हैं। फिर चौथे दिन, देवी कामाख्या की पूजा करने के बाद भक्तों को मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी जाती है।ऐसी मान्यता है कि यह मेला वास्तविक अर्थ में स्त्रीत्व का उत्सव है।यह मंदिर दुनिया का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहाँ पर मासिक धर्म आने पर पूजा की जाती है और यह समय अत्यंत पवित्र माना जाता है।
ब्रह्मपुत्र का जल हो जाता है लाल
हर साल यहां अम्बुवाची मेले के दौरान पास में स्थित ब्रह्मपुत्र नदी का पानी तीन दिन के लिए लाल हो जाता है। ऐसी मान्यता है कि पानी का यह लाल रंग कामाख्या देवी के मासिक धर्म के कारण होता है।मान्यता के अनुसार इन दिनों में नदी में स्नान नहीं करना चाहिए।
प्रसाद में मिलता है लाल वस्त्र
मंदिर में भक्तों को बहुत ही अनोखा प्रसाद दिया जाता है। दूसरे शक्तिपीठों की अपेक्षा कामाख्या देवी मंदिर में प्रसाद के रूप में लाल रंग का गीला कपड़ा दिया जाता है।कहा जाता है कि देवी के रजस्वला होने से पूर्व गर्भगृह में स्थित महामुद्रा के आस-पास सफ़ेद वस्त्र बिछा दिए जाते हैं,तीन दिन बाद जब मंदिर के पट खोले जाते हैं तब यह वस्त्र माता के रज से रक्तवर्णं हो जाते है इस कपड़े को अम्बुवाची वस्त्र कहते हैं।बाद में इसी वस्त्र को भक्तों में प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।कहते हैं इस वस्त्र को धारण करके उपासना करने से भक्त की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
Source : Amar Ujala | Photos : SUBHAM KUMAR SAH