मुजफ्फरपुर में एक ऐसी लाइब्रेरी है जहां आपको आजादी के पहले से अब तक के सभी अखबार मिल जाएंगे। फिर चाहे वो देश की आजादी के दिन वाला अखबार हो या बाबरी विध्वंस के दिन का।

लेकिन 1857 की तिरहुत गदर क्रांति की यादों को समेटे ये लाइब्रेरी सरकार की उपेक्षा के कारण बदहाली की स्थिति में पहुंच गयी है। लाइब्रेरी का निर्माण 1942 में दुर्गा भाभी की याद में किया गया था। इसको डिजिटल और संरक्षित करने की मांग काफी समय से चल रही है, कई बार जनप्रतनिधियों ने आश्वासन भी दिया, लेकिन हुआ कुछ नहीं।

मुजफ्फरपुर, मड़वन प्रखंड के बड़कागांव में स्थित लगभग 72 साल पुराने इस पुस्तकालय का संरक्षण क्यों जरूरी है, इस पर एक घटना का जिक्र करते हुए विश्वपाल राय कहते हैं, “1967 में हमारे चाचा स्वर्गीय राधाकांत सिंह जो आरपीएफ में थे, नागा विद्रोह में असम के शिव सागर में उनकी हत्या हो गयी, वे रेलवे में थे।

पूरी बोगी को ही उड़ा दिया गया, शव की कोई पहचान नहीं हो पायी और न ही हमारे पास कोई कागजात थे। लेकिन उस दिन का अखबार इस लाइब्रेरी में था। कोर्ट और सरकार के सामने उसे पेश किया और उसी अखबार की वजह से मेरे चचेरे भाई यानी उनके बेटे को नौकरी मिली।” विश्वपाल राय ही इस समय लाइब्रेरी की देखरेख करते हैं और स्व. जय प्रकाश नारायण आजाद के बेटे हैं जो इस लाइब्रेरी के संरक्षक थे।

1942 में इस लाइब्रेरी का निर्माण दुर्गा भाभी की याद में किया गया था। दुर्गा भाभी भारत के स्वतंत्रता संग्राम में क्रान्तिकारियों की प्रमुख सहयोगी थीं। 18 दिसंबर 1928 को भगत सिंह ने इन्ही दुर्गा भाभी के साथ वेश बदल कर कलकत्ता-मेल से यात्रा की थी। दुर्गाभाभी क्रांतिकारी भगवती चरण बोहरा की धर्मपत्नी थीं। तिरहुत क्रांति को लेकर लिखी गयी गदर इन तिरहुत किताब के अनुसार मुजफ्फरपुर में स्वतंत्रता की लड़ाई की अलख दुर्गा भाभी ने ही जगाई थी, इसिलए इस लाइब्रेरी को उनका नाम नाम दिया गया।

बड़का गांव में ही इस लाइब्रेरी का निर्माण क्यों कराया गया इसकी अपनी अगल ही कहानी है। गदर इन तिरहुत में इस बारे में लिखा गया है कि आजादी की लड़ाई में बड़का गांव का बहुत बड़ा योगदान है। आजादी की लड़ाई के समय इस गांव के 27 लोगों को काला पानी की सजा हुयी थी।

इस बारे में 70 विश्वपाल राय कहते हैं ” हमने अभिलेखागार से वह अभिलेख खोजा जिसमें तिरहुत जिले के 27 लोगों को काला पानी की सजा का जिक्र है।

फैसले की प्रति ऑफिसियेटिंग जज एएल डम्पायर के हस्ताक्षर से जारी है। इस दस्तावेज में बताया गया है कि 22 जून 1857 को बड़कागांव के रामदेव शाही, केदार शाही, छद्दु शाही, किसना शाही, तिलक तिवारी, शिवदुल डुर्मी, नाथू शाही, छठ्ठु शाही, हंसराज शाही, शोभा शाही, बिजनाथ तिवारी, तिलक शाही, पुनदेव शाही, कीर्ति शाही, छतरधारी शाही, दर्शना शाही, रौशन शाही आदि को मुजफ्फरपुर के तत्कालीन थानेदार डुमरीलाल ने बिना हथियार गिरफ्तार किया था। इन्हें 18 सितंबर 1857 को आजीवन काला पानी की सजा देने के साथ ही उनकी संपत्ति जब्त करने का फैसला सुनाया गया था। इसी दस्तावेज के आधार पर किताब गदर इन तिरहुत लिखी गयी है।”

दुर्गा लाइब्रेरी में ये सभी साक्ष्य मौजूद हैं। इसीलिए इस लाइब्रेरी को डिजिटल करने और संरक्षित करने मांग समय-समय पैट उठती रही है। 2006 सांसद रघुवंश सिंह ने अपने मद की राशि से इस पुस्तकालय का नवनिर्माण करवाया और साथ ही इन शहीदों स्मारक भी बनवाया। जिसका शिलान्यास पूर्व परिवहन मंत्री अजित कुमार ने किया था। तब अजित कुमार ने यह घोषणा की थी की इस स्थान को पर्यटन स्थल के रूप में एक नई पहचान दूंगा और इस पुस्तकालय को डिजिटल बना दूंगा, लेकिन बात आयी-गयी हो गयी।

लाइब्रेरी की देखरेख करने वालों में से एक विश्वपाल राय के पोते गौरव कुमार (22) कहते हैं ” यहाँ रोज आस-पास के जिलों से लोग आते हैं। कोई 1970 का अख़बार मांगता है तो कोई 1978 का, लेकिन इतने वर्षों के अख़बार में से किसी एक दिन का अख़बार निकालने में बहुत दिक्कत होती है। हम इसकी देखरेख की मांग भी कर रहे हैं। मैं खुद कई बार डीएम से मिल चुका हूँ, मुख्यमंत्री को भी पत्र लिख चुका हूँ, लेकिन इसकी सुधि लेने वाला कोई नहीं है। हम लोग भी बड़ी मुश्किल से देखरेख कर पा रहे हैं।”

लाइब्रेरी के बाहर उन 27 शहीदों के नाम का सिलापट्ट लगा जो तिरहुत क्रांति के समय शहीद हुए थे। लाइब्रेरी की मौजूदा स्थिति की बात करें तो बहुत से अख़बारों को दीमक ख़त्म करने में लगे हैं। आजादी की विरासत धीरे-धीरे दम तोड़ रही है।

Input : Gao Connection

Photos : Gaurav Singh

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