अपनी संतान के गुण-धर्मों को जानने के प्रति हर कोई चरम स्तर तक उत्सुक होता है। अपनी इस जिज्ञासा को शांत करने के लिए अभी तक हम बेबस थे, अब विज्ञान के इस युग ने इस असंभव को भी संभव बना दिया है।
डिजायनर बेबी के इस युग में दुनिया में तमाम ऐसी कंपनियां सामने आई हैं जो बच्चे के डीएनए को जांचकर बता रही हैं कि यह आगे चलकर डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, कलाकार या फिर सामान्य इंसान बनेगा। चीन सहित दुनिया भर में जेनेटिक टेस्टिंग नामक इस तकनीक का कारोबार तेजी से बढ़ रहा है। 2018 में इस उद्योग का कारोबार सिर्फ चीन में 4.1 करोड़ डॉलर से 2025 तक तीन गुना बढ़कर 13.5 करोड़ डॉलर होने का अनुमान है।
असहमति भी कम नहीं
दुनिया के सबसे बड़े आबादी वाले देश चीन में हर साल औसतन 1.5 करोड़ बच्चे जन्म लेते हैं। ऐसे में इन अभिभावकों का इस तकनीक के प्रति सहज रुझान समझा जा सकता है जब कंपनियां इन्हें बताती हैं कि इस तकनीक से बच्चे की सीखने की क्षमता, आंकड़ों की याद्दाश्त शक्ति, तनाव सहने की क्षमता जैसे गुणों का पता लगाया जा सकता है। लेकिन कुछ लोग कंपनियों के इन दावों को विज्ञान की जगह महज जन्मपत्री करार देते हैं। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के आनुवंशिक विद और बिग डाटा इंस्टीट्यूट के निदेशक गिल मैक्वेन का मानना है कि बच्चों के डीएनए के आधार पर इन चीजों का आकलन इतनी निश्चितता के आधार पर नहीं किया जा सकता है।
आधुनिक भविष्यवक्ता
वैज्ञानिक इस तकनीक को आधुनिक युग के भविष्य बताने वाले की संज्ञा देते हैं। उन पंडितों की पोथी के रूप में डीएनए को देखते हैं। व्यक्ति का डीएनए उसके आनुवंशिक गुणों का वाहक होता है। जीन डिस्कवरी इस तकनीक की अग्रणी कंपनी है। दुनिया में इस कारोबार में कंपनियों की एक पूरी पौध शुमार हो चुकी है। ये कंपनियां अभिभावकों से उनके बच्चों के तार्किकता, गणित और खेल जैसे विषयों से लेकर उसकी जज्बाती क्षमताओं के सटीक आकलन का दावा कर रही हैं।
कंज्यूमर जेनेटिक्स में उछाल
ग्लोबल मार्केट इनसाइट के अनुसार बच्चों के डीएनए से उनके गुणधर्मों की पहचान करने वाले कारोबार का भविष्य बहुत उज्ज्वल है। 2025 तक यह सिर्फ चीन में 13.5 करोड़ डॉलर होने का अनुमान जताता है। ईओ इंटेलीजेंस 2022 तक इस बाजार के 40 करोड़ डॉलर को पार कर जाने का अनुमान जताती है। उसके अनुसार 2022 तक छह करोड़ चीनी लोग डीएनए टेस्टिंग किट का इस्तेमाल करने लगेंगे जिनकी अभी संख्या 15 लाख है।
तकनीक का तकाजा
इस तकनीक में बच्चे की लार या अन्य तरीके से उसका डीएनए एकत्र किया जाता है। उसमें संभावित रोगों के साथ उसके जीन्स के आधार पर उसके गुणों का आकलन किया जाता है। जैसे एक प्रकार के ब्रेन प्रोटीन को तैयार करने के लिए निर्देशित करने वाला बीडीएनए जींस अगर किसी बच्चे में नदारद है तो उसमें अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टीविटी डिसऑर्डर की आशंका बलवती है। इसी तरह अगर की बच्चे में एससीटीएन 3 जींस का कोई संस्करण मिलता है तो उसके अच्छे धावक बनने की संभावना प्रबल होती है। अगर अभिभावकों को समय से पहले पता चल जाता है कि उनका बच्चा अमुक क्षेत्र में रुचि रखेगा तो वे शुरुआत से ही उसे वैसा माहौल देना सुनिश्चित कर देते हैं। हालांकि दुनिया के विभिन्न हिस्सों में इस तरीके के परीक्षण अलग-अलग शर्तों के साथ प्रतिबंधित हैं।
Input : Dainik Jagran