मुजफ्फरपुर जिले में सड़क दुर्घटनाओं में हर महीने औसतन 35 से 40 लोगों की जान जा रही है, लेकिन इनमें से सिर्फ पांच मृतकों के आश्रितों को भी मुआवजा दिलाने का प्रस्ताव थानों से परिवहन ट्रिब्यूनल तक नहीं पहुंच पा रहा है। मुआवजे के लिए पीड़ित आश्रित थाने और ट्रिब्यूनल के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन जांच के नाम पर मुआवजे का प्रस्ताव महीनों से लंबित है।

लगातार बढ़ती शिकायतों को देखते हुए एसएसपी राकेश कुमार ने सभी थानेदारों को निर्देश जारी किया है कि दुर्घटना में मृतकों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिलने के बाद एक सप्ताह के भीतर डीटीओ और परिवहन ट्रिब्यूनल को मुआवजे का प्रस्ताव भेजा जाए।

दरअसल, दुर्घटना में मृतकों के आश्रितों को दो प्रकार से मुआवजा मिलता है। यदि दुर्घटना में अज्ञात वाहन शामिल हो, तो थाने में केस दर्ज होने के बाद आश्रित परिवहन कार्यालय में आवेदन कर सकते हैं, जहां पुलिस की जांच रिपोर्ट आने पर उन्हें दो लाख रुपये का मुआवजा मिलता है। यदि वाहन चिह्नित हो, तो ट्रिब्यूनल में सुनवाई के बाद चार लाख रुपये का मुआवजा प्रदान किया जाता है, जिसमें पुलिस रिपोर्ट आवश्यक है।

हालांकि, कई मामलों में पुलिस की लापरवाही के कारण मुआवजे का भुगतान नहीं हो पा रहा है। उदाहरण के लिए, सीतामढ़ी जाने वाले हाइवे पर बीते साल एक मई को एक अज्ञात वाहन की ठोकर से मजदूर राजदेव राम की मौत हो गई थी। उनकी पत्नी पितरी देवी ने मुआवजे के लिए आवेदन दिया, लेकिन थाना से आवश्यक कागजात नहीं भेजे जाने के कारण अब तक मुआवजा नहीं मिल सका।

ऐसी ही स्थिति मदन साह के परिवार के साथ भी हुई, जिनकी मौत दरभंगा फोरलेन पर हुई थी। उनके पुत्र अनुप साह ने कई बार परिवहन कार्यालय का दौरा किया, लेकिन उन्हें मुआवजे के लिए आवश्यक दस्तावेजों के अभाव में कोई राहत नहीं मिली।

(उपरोक्त जानकारी हिंदुस्तान समाचार पत्र में प्रकाशित मीडिया रिपोर्ट के आधार पर दी गई है।)

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