भोजपुरिया माटी के लाल बाबू कुँवर सिंह पुरुषार्थ के प्रयाय है। जाति के बंधन से मुक्त है… बाबू कुँवर सिंह हम सबके है.. 1857 की क्रांति के आरंभ से ही बाबू कुँवर सिंह के नेतृत्व में भोजपुरिया माटी में क्रांति के ज्वालामुखी का विस्फ़ोट हुआ। नतीज़न बाबू कुँवर सिंह ने शाहाबाद की धरती से अंग्रेजो को खदेड़ भगाया और जीत हासिल किया।
शाहाबाद के धरती से अंग्रेजो को खदेड़ने का उत्सव है 23 अप्रैल… भोजपुरीया माटी में आज भी अगर युवक कबड्डी खेलते है तो कबड्डी- कबड्डी के जगह… बांस की फ़र्राटी, बाबू कुँवर सिंह की लाठी… झना-झन तरुआर, झना-झन तरुआर बोलते है।
बिहार के गौरव है…. बाबू कुँवर सिंह । हम सबके सम्मान है… वीरता के प्रमाण है बाबू कुँवर सिंह। बाबू कुँवर सिंह अंग्रेजो को पराजित कर भगवा ध्वज फहराना चाहते थे। सनातन संस्कृति से भारत को संचालित करने का बोध रखते थे। बाबू कुँवर सिंह जाति से मुक्त भारत चाहते थे.. कविराज रामधारी सिंह दिनकर ने लिखा है…जाति- जाति क्या करता है, जाति पूछ मेरे भुजबल से।
अंग्रेजो से जंग में बाबू कुँवर सिंह का जब हाथ घायल हुआ तो उन्होंने अपने ही तलवार से अपने हाथ को काट दिया। असली मर्दाना अगर धरती पर कोई जन्मा तो बाबू कुँवर सिंह उनमें से थे। तो मिलकर कहिये.. बांस की फ़र्राटी, बाबू कुँवर सिंह की लाठी… झना-झन तरुआर, झना-झन तरुआर।