बैंड-बाजा के लिए मशहूर शहर के छाता बाजार के कलाकारों ने अच्छी पहल की है। अब वे लग्न एवं शुभ मुहूर्तों पर फूहड़ एवं अश्लील गानों की प्रस्तुति नहीं देंगे। शनिवार को यहां के कलाकारों ने एक बैठक कर सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया। तय किया कि ग्राहकों के सामने बुकिंग के समय ही यह शर्त रखी जाएगी कि वे फूहड़ एवं अश्लील गाने नहीं बजाएंगे। इसलिए उनसे इस तरह की फरमाइश नहीं की जाए। बैंड-बाजा कलाकारों का एक प्रतिनिधिमंडल जिला प्रशासन को भी इस निर्णय से अवगत कराएगा। छाता बाजार के 82 वर्षीय बुजुर्ग कलाकार मास्टर रफन ने कहा कि बैंड-बाजे का संगीत लोगों को सुखद एहसास दिलाता है। शादी और शुभ मुहुर्तों पर बैंड-बाजा कलाकारों द्वारा प्रस्तुत पारंपरिक व अच्छे गाने शोभा देते हैं। इसे लोग पसंद भी करते हैं। शादी-ब्याह के मौके पर बहुत कम लोग ही होते हैं जो फूहड़ और अश्लील गाने पसंद करते हैं। चंद लोगों की ऐसी जिद के कारण बैंड-बाजे से लोगों की दूरी बढ़ने लगी है। दूसरी ओर डीजे की तेज आवाज से बच्चे, बूढ़े और बीमार लोगों को परेशानी होती है। इसलिए ऐसी फरमाइश का समर्थन छाता बाजार के बैंड-बाजा कलाकार नहीं करेंगे। बैठक में एकराम अली, मास्टर फरीद, मन्नु मास्टर, मो़ हुसैन, मास्टर वसीम, भटु अली, कासिम अली आदि थे।
1955 से छाता बाजार में रह रहे यूपी के कलाकार
मास्टर आरिफ मसूदी ने बताया कि छाता बाजार में 1955 में यूपी के रामपुर जिले से पहली बार मास्टर विन्लत, मास्टर गुच्छन और छोटीयर उस्ताद आए थे। उसके बाद से बैंड-बाजे की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए अभी यहां पर 25 ग्रुप के कलाकार काम कर रहे हैं। यहां पर डेढ़ सौ से अधिक कलाकार रहते हैं। इनके अलावा लग्न के समय सौ से अधिक कलाकार रामपुर से भी आते हैं, जो अलग-अलग बुकिंग पर जाते हैं।
पोशाक से लेकर संगीत प्रस्तुति तक में बदलाव
कलाकार आरिफ मसूदी ने बताया कि हमलोग बैंड-बाजा के इस पेशे में पुराने समय की परंपरा को फिर से लौटाने की कोशिश में हैं। बेसुरे व तेज आवाज के अश्लील संगीत की जगह मो. रफी, किशोर और मुकेश समेत उन पुराने मेलोडी गानों को फिर से बैंड-बाजे की धुन पर बिखेरने की कोशिश में हैं, जिससे शादी-ब्याह के उत्सव में चार चांद लगता था। कलाकारों के राजसी और नवाबी पोशाक, छाता आदि को चलन में लाना चाह रहे हैं।
Source : Hindustan