बिहार में जाति जनगणना के आंकड़े जारी कर दिए गए हैं। लंबे विवाद के बाद यह जनगणना कराई गई थी, जिसके आंकड़े अब सामने आए हैं। इसके मुताबिक राज्य में अत्यंत पिछड़ा वर्ग की आबादी 36.1 फीसदी है, जबकि पिछड़ा की आबादी 27.12 फीसदी है। दोनों को मिलाकर देखें तो साफ है कि कुल पिछड़ा वर्ग की आबादी 63 फीसदी से ज्यादा है। जो राज्य में किसी भी सामाजिक समूह के मुकाबले सबसे अधिक संख्या है। इस रिपोर्ट को राज्य में पिछड़ा वर्ग की राजनीति के लिए एक नई शुरुआत के तौर पर भी देखा जा रहा है।

अनुसूचित जाति के लोगों की संख्या 19.65 फीसदी है और जनजाति की संख्या 1.68 पर्सेंट है। यही नहीं अनारक्षित वर्ग यानी सवर्णों की आबादी 15 फीसदी है। इनमें वे बिरादरियां आती हैं, जिन्हें जाति आधारित आरक्षण नहीं मिलता। रिपोर्ट के अनुसार राज्य में जाति की बात करें तो सबसे ज्यादा यादवों की 14 फीसदी है, जबकि ब्राह्मणों की आबादी 3.66 पर्सेंट है। सर्वे के अनुसार राज्य में भूमिहारों की संख्या 2.86 फीसदी है, जबकि राजपूतों की आबादी 3.45 पर्सेंट है।

मुसहर समाज के लोगों की संख्या 3 फीसदी के करीब बताई गई है। राज्य में वैश्य समाज के लोगों की संख्या ढाई फीसदी के करीब है। वहीं कुर्मी बिरादरी की 2.87 फीसदी है। जातिवार देखें तो सबसे ज्यादा 14 फीसदी आबादी यादवों की है, जो कुल सवर्णों की संख्या से थोड़ा ही कम है। माना जा रहा है कि बिहार में अब लोकसभा चुनाव के अलावा विधानसभा चुनाव में भी ओबीसी कार्ड चला जा सकता है। आरजेडी, जेडीयू और कांग्रेस का राज्य में गठबंधन है और तीनों ही पार्टियां इसे लेकर केंद्र सरकार पर हमला बोल सकती है। नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव तो लगातार मांग करते रहे हैं कि जाति जनगणना पूरे देश में होनी चाहिए। यही नहीं यूपी में अखिलेश यादव भी इस मांग का समर्थन करते रहे हैं।

धार्मिक आधार पर देखें तो राज्य में हिंदुओं की संख्या 81 फीसदी के करीब है। इसके अलावा 15 फीसदी के करीब राज्य में मुसलमान हैं। बिहार में जाति गणना दो चरणों में हुई थी। पहला राउंड इसी साल 7 जनवरी से 21 जनवरी के दौरान पूरा हुआ था, जबकि दूसरा चरण 15 अप्रैल से अगस्त के पहले सप्ताह तक चला था। जाति जनगणना कराए जाने के राज्य सरकार के फैसले को हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक चुनौती दी गई थी, लेकिन अंत में अदालत से मंजूरी मिली।

(खबर अपडेट की जा रही है)

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