– कभी मुर्गो को गाड़ी से एक जगह से दूसरे जगह जाते देखा है ? वो भी सहूलियत से जाते है थोड़ा मगर हमारे देश के ट्रेन में जनरक डिब्बा में सफ़र करना एक चुनौती है, जो समर्थ लोग है वो तो रिजर्वेशन की टिकट ले लेते है और गरीबों को सरकार छोड़ देती है, जनरल डब्बे के भरोशे, जहाँ सीट तो छोड़िए बाथरूम तक इंसान ठुसे रहते है- कभी गरिमत कर के घुस के देखिये जनरक डिब्बे में मानवता शर्मसार नहीं हो गयी तब कहिएगा.

बिहार देश का ऐसा राज्य शायद सबसे ज़्यादा प्रवासी यहीं के लोग हो, रोजगार और कल कारखाना के अभाव में यहां के लोग दिल्ली, मुंबई और बंगलोर जैसे बड़े शहर का रुख करते है, और उनके सफ़र का माध्यम होता है ट्रेन और भैया हर कोइ इतना समर्थ नहीं है जो हजार 2 हजार वाला रिजर्वेशन का टिकट ले सके, टिकट तो महंगा हो गया लेकिन लोगों की आमदनी नहीं बढ़ी तब मजबूरी में सहारा बनता है जानवरों जैसे ठेलमठेल वाला रेलवे का जनरल डब्बा, हर ट्रेन में गिनती के चार-पांच ही जनरल कोच होते है और चढ़ने वाले लोग इतने होते है की आदमी को आदमी पर चढ़ कर सफ़र करना पड़ता है, ग़लती से कोई बुजुर्ग या असहाय जनरल की टिकट लेकर रिजर्वेशन में चढ़ जाए तो टिकट मास्टर डरा धमका कर फाइन काट देता है, रेलवे में फाइन काटने का गोरखधंधा ही रेलवे टी टी ई की उपरी कमाई है, अक्सर आपने भी देखा होगा टी. टी. ई को डरा धमका कर गरीब लोगों से वसूली करते.

खैर जनाब जेनरल के यात्री खुद को जानवर मान कर तो यात्रा कर लेते है, लेकिन बिहार से लंबे सफर के लिए खुलने वाले ट्रेनों में पैसे वालो को भी रिजर्वेशन का टिकट नहीं मिल पाता जेब में पैसे रहते लोग रिजर्वेशन नहीं ले पाते क्योंकि वहां भी पैसे देने वाले बहुत है और सीट सीमित है, पैसे खर्च करने वालों को जब सीट नहीं मिल पाती तो गरीबों की चिंता छोर ही दीजिये.. जिस प्रकार ट्रेन में कहते है सवारी अपने सामान का खुद जिम्मेदार है ठीक उसी तरह हम कह सकते रेलवे की इस हालत का जनता खुद ज़िम्मेदार है क्योंकि एक दो दिन का कष्ट काट कर हम सफ़र तो कर लेते है लेकिन इन तकलीफों को लेकर सरकार के खिलाफ कभी लामबंद नहीं होते, जो जैसे चल रहा है चलने दीजिये, जैसे तैसे ही सही सवारी स्थान तक धकेल दे रही है रेलवे.

आप देश में तेजस, वन्दे भारत बेशक चलाइये लेकिन एक गरीब इंसान भी इसी भारत का नागरिक है उसकी भी चिंता होनी चाहिए, ऐसे ट्रेनों की मांग उठे जिसमें अधिक जनरक डिब्बे हो, वी आई पी लोगों के ख्याल रखने से आगर रेलवे को ज़रा सी फुरसत मिल जाये तो तनिक जनरल लोगो की भी सोचिए, इस देश के गरीब भी वोटर है..

वर्तमान समय में होली के बाद बिहार आये लोगो के लिये दिल्ली , मुम्बई और बंगलोर जाना बहुत मुश्किल हो रहा है, मेरी उपर लिखी बातों का जीवंत सार देखना हो तो ज़रा रेलवे स्टेशन घूम आइए..

 

अभिषेक रंजन, मुजफ्फरपुर में जन्में एक पत्रकार है, इन्होंने अपना स्नातक पत्रकारिता...