बिहार में सरकार गठन के बाद से भाजपा-जदयू (BJP-JDU) के बीच तकरार में अब दरार झलकने लगे हैं, लेकिन दोनों दल इससे फिलहाल इनकार करते हैं. मगर हालात कुछ और बयां कर रहे हैं. तथाकथित भाजपाई रणनीति से विधानसभा चुनाव के पहले से शुरू हुई लोजपा (LJP) संग तनातनी राजनीतिक दुश्मनी में बदल चुकी थी. पर, उसका प्रभाव अरुणाचल प्रकरण के बाद दिखने लगा है. रविवार को राजनीतिक दल के रूप में जदयू की ओर से अपने स्वतंत्र और मजबूत अस्तित्व को ध्यान में रखकर लिए गए फैसले इसकी एक बानगी है. जदयू ने अपना नया राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना और भाजपा के प्रति कड़ी नाराजगी भी व्यक्त की. दोनों एक-दूसरे से जुड़े हैं. यह संकेत भी है कि पार्टी ऐसे ही दमखम के साथ आगे बढ़ने वाली है और संख्या बल की वजह से ‘छोटे भाई’ जैसा संबोधन उसे अब पसंद नहीं.

जदयू कार्यकारिणी की बैठक में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की निरपेक्ष अभिव्यक्ति, आरसीपी सिंह (RCP Singh) को जदयू की कमान, मीडिया में राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी के तल्ख बयान से साफ है कि सत्ता पक्ष के दो बड़े दल भाजपा और जदयू के संबंध अब पहले की तरह मधुर नहीं हैं. आरसीपी सिंह को जदयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी के साथ ही मित्र दलों के संबंधों को नए सिरे से परिभाषित कर दिया. हालांकि जदयू नेतृत्व परिवर्तन की वजह नीतीश कुमार बिहार में सुशासन के काम को और बेहतर ढंग से पूरा करना बता रहा है, लेकिन नीतीश कुमार के सीएम की कुर्सी छोड़ने की पेशकश के साथ जदयू ने भाजपा को साफ कर दिया है कि गठबंधन का कभी भी ‘बंधन’ टूट सकते है.

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संगठन विस्तार में अब कोई संकोच नहीं

‘लव जिहाद’ पर भाजपा से अलग जदयू की स्पष्ट राष्ट्रीय नीति और अरुणाचल के मलाल के साथ जदयू में नेतृत्व परिवर्तन के बाद यह तय हो गया कि दूसरे प्रदेशों में संगठन विस्तार में अब कोई संकोच नहीं रहेगा. पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव आने वाला है. वहां की प्रदेश इकाई का लगातार दबाव है, किंतु आलाकमान की ओर से अभी तक साफ नहीं किया जा रहा था. माना जा रहा है कि कार्यकारिणी के फैसले के बाद जल्द ही पश्चिम बंगाल में चुनाव को लेकर भी स्पष्ट घोषणा हो सकती है. भाजपा के खिलाफ प्रत्याशी उतारने से भी गुरेज नहीं होगा. हालांकि, जदयू एमएलसी व पश्चिम बंगाल प्रभारी पहले ही कह चुके हैं कि 75 सीटों पर पार्टी की पूरी तैयारी है. समय और परिस्थितिवश यह संख्या बढ़ भी सकती है. वैसे अंतिम फैसला बंगाल के पार्टी नेताओं से बातचीत के बाद आलाकमान (नीतीश कुमार) लेंगे.

आरसीपी सिंह एक साथ कई मर्ज की दवा

आरसीपी सिंह एक साथ जदयू के कई मर्ज की दवा हो सकते हैं. मंत्रिमंडल विस्तार के मुद्दे पर राजग के घटक दलों से समन्वय की बात हो या बिहार में गठबंधन की सरकार चलाते हुए कई बार पार्टी का पक्ष रखने की समस्या. आरसीपी खुलकर बोल सकते हैं. भाजपा के साथ समन्वय में लोचा पर जदयू के हक की बात कर सकते हैं. दूसरी सबसे बड़ी सहूलियत होगी कि बिहार से बाहर संगठन के विस्तार में नीतीश कुमार की प्रशासनिक व्यस्तता अब आड़े नहीं आएगी. जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष होते हुए भी नीतीश बिहार में ही इस तरह व्यस्त रहते थे कि संगठन के अन्य कार्यों के लिए फुर्सत नहीं निकाल पाते थे.

Source : News18 – Rajesj Kumar Ojha

(डिस्क्लेमरः ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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