दिल्ली चुनाव नतीजों ने सब को हैरत में डाला हैं। केंद्र में काबिज राष्ट्रीय स्तर की पार्टी महज 8 सीट पे सिमट गई हालांकि यह 5 सीटों की बढ़ोतरी के बाद कि स्थिति है।वही दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी ने न सिर्फ अपनी सरकार बचा ली साथ ही यह संदेश भी दिया कि “काम की राजनीति” का नया दौर आ गया है जिसे राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के परे स्थानीय मांगो को तवज्जो दी जानी चाहिए।

1.राष्ट्रीयता बनाम स्थानीयता

दिल्ली चुनाव नतीजे ने एक बात स्पष्ट कर दी कि राष्ट्रीय राजनीति और राज्य की राजनीति दोनो की ही प्रकृति भिन्न है।
राष्ट्रीय राजनीति की परिस्थितियों को स्थानीय राजनीति में प्रयोग नही किया जा सकता।

2.नकारात्मक प्रचार

दिल्ली चुनाव में आम आदमी पार्टी के खिलाफ अन्य दलों ने नकारात्म प्रचार किया जबकि आम आदमी पार्टी ने काम के आधार पे चुनाव लड़ा। जनता ने नकारात्म प्रचार को नकार दिया।

3. कांग्रेस की दयनीय स्थिति

दिल्ली चुनाव ने कांग्रेस को स्पष्ट रूप से नकार दिया। सबसे पुरानी पार्टी जिसने दिल्ली की सत्ता पर इतने दिनों तक खुद को काबिज किया हो उसे एक भी सीट नही मिली।कांग्रेस के लिए अब जनाधार को बचाये रखना सबसे बड़ी चुनौती होगी।

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