संसद सत्र के दौरान बुधवार को राज्यसभा में कई महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए गए। आम आदमी पार्टी के नेता राघव चड्ढा ने इस बीच महाराजा रणजीत सिंह के 19वीं सदी के स्वर्ण सिंहासन को ब्रिटेन से वापस लाने की मांग की है। सोने की चादर से ढका यह सिंहासन फिलहाल लंदन के विक्टोरिया और अल्बर्ट संग्रहालय में है। राघव चड्ढा ने केंद्र सरकार से अनुरोध किया है कि वह ब्रिटेन सरकार के साथ बातचीत कर इस ऐतिहासिक धरोहर को भारत वापस लाए।
राघव चड्ढा ने इसकी जानकारी सोशल मीडिया मंच X पर साझा की। उन्होंने लिखा, “आज संसद में मैंने महाराजा रणजीत सिंह जी के शाही सिंहासन को वापस लाने की मांग की है, जो वर्तमान में लंदन के विक्टोरिया और अल्बर्ट संग्रहालय में है। मैंने भारत सरकार से अनुरोध किया है कि वह इसके लिए यूनाइटेड किंगडम के साथ अपने मजबूत रिश्ते का फायदा उठाए।”
Today in Parliament, I demanded the repatriation of Maharaja Ranjit Singh Ji’s royal throne currently placed at the Victoria and Albert Museum in London. I urged the Govt of India to press into service its diplomatic relations with United Kingdom for the same.
His legendary… pic.twitter.com/xNEgevuOla
— Raghav Chadha (@raghav_chadha) July 24, 2024
चड्ढा ने यह भी कहा, “महाराजा रणजीत सिंह जी के महान शासन ने पंजाब को एकजुट किया, धर्मनिरपेक्ष मूल्यों, न्याय, समानता, सांस्कृतिक विरासत और सुशासन को बढ़ावा दिया। मैंने यह भी मांग की कि हम अपने इतिहास में महाराजा रणजीत सिंह जी की विरासत और उनके योगदान को स्कूली पाठ्यपुस्तकों में शामिल करें ताकि छात्र उनके बारे में जान सकें।”
प्रसिद्ध सुनार हाफ़िज़ मुहम्मद मुल्तानी ने 1805 और 1810 के बीच महाराजा रणजीत सिंह के लिए यह शानदार सिंहासन बनाया था, जो महाराजा के दरबार की भव्यता का प्रतीक था। यह सिंहासन सोने की मोटी चादर से ढका हुआ है और इसके निचले हिस्से में कमल की पंखुड़ियों के डिज़ाइन हैं, जो पवित्रता का प्रतीक हैं।
1849 में ब्रिटेन ने पंजाब पर कब्ज़ा किया था, तब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस सिंहासन को जब्त कर लिया था। इसे लीडनहॉल स्ट्रीट पर ईस्ट इंडिया कंपनी के संग्रहालय में प्रदर्शित करने के लिए लंदन भेजा गया था। अन्य कलाकृतियों को लाहौर में नीलाम कर दिया गया था। 1879 में संग्रहालय के संग्रह के बंटवारे के बाद सिंहासन को दक्षिण केंसिंग्टन संग्रहालय में भेज दिया गया, जिसे अब विक्टोरिया और अल्बर्ट संग्रहालय के रूप में जाना जाता है।