बिहार लगातार बीमारियों चपेट में है। कभी बाढ़, सुखाड़ तो कभी दूसरी महामारी। मगर इनसे निपटने को राज्य के पास स्वास्थ्य संबंधी तंत्र बेहद कमजोर है। न डॉक्टर हैं और न नर्स। सामान्य चिकित्सकों से लेकर विशेषज्ञ डॉक्टरों तक का टोटा है। मेडिकल कॉलेजों में विशेषज्ञों के डेढ़ सौ से अधिक तो अन्य चिकित्सकों के तकरीबन 800 पद खाली हैं। जिला से लेकर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों तक डॉक्टरों की कमी है। नियमित तो छोड़िए, संविदा वाले डॉक्टरों की संख्या भी स्वीकृत पदों के मुकाबले एक चौथाई भी नहीं है।जानलेवा बुखार से मौतों को लेकर सुप्रीम कोर्ट का द्वार खटखटाया गया था। मगर सर्वोच्च अदालत ने हाईकोर्ट जाने की सलाह देते हुए यह भी कहा कि डॉक्टरों की भर्ती कोर्ट तो नहीं करेगा। अब बिहार में चिकित्सकों और अन्य पैरा मेडिकल स्टाफ की उपलब्धता की हकीकत पर नजर डालते हैं। राज्य के नौ मेडिकल कॉलेज इन दिनों विशेषज्ञ चिकित्सकों की भारी कमी से जूझ रहे हैं। प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर के करीब 150 रिक्त पदों के लिए आवेदन मांगे जा रहे हैं। आवेदन नहीं आए तो तिथि बढ़ानी पड़ी। इन पदों पर डॉक्टर ऑफ मेडिसिन (डीएम) और एमसीएच डिग्री धारक विशेषज्ञों की भर्ती होनी है। इन मेडिकल कॉलेजों में अन्य डॉक्टरों की भी भारी कमी है। विभागीय सूत्रों की मानें तो तीनों कैटेगरी में 800 से अधिक पद खाली हैं। मुजफ्फरपुर के एसकेएमसीएच पूरी तरह से जूनियर डॉक्टरों के हवाले है। यहां तीस से अधिक प्रोफेसर के पद खाली हैं। लगभग इतने ही विशेषज्ञ डॉक्टरों के पद खाली हैं। इसके कारण एईएस से निपटने के लिए पटना और दिल्ली से डॉक्टरों की टीम बुलानी पड़ी थी। नर्स के तीन सौ से अधिक सीटें खाली हैं। किसी विभाग में नर्स की आधी सीटें भी नहीं भरी हैं। यही हाल ड्रेसर और अन्य कर्मचारियों की भी है। एसकेएमसीएच जैसा हाल ही सदर अस्पताल का भी है।

जिला अस्पतालों में भी नहीं डॉक्टर-नर्स

राज्य के जिला, रेफरल और अनुमंडल अस्पतालों के अलावा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, उप केंद्रों और अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर न मानक के अनुरूप डॉक्टर हैं और न ही नर्स। नियमित डॉक्टरों की संख्या आधे से भी कम है। जबकि नर्स करीब 40 प्रतिशत ही हैं। एएनएम के भी करीब आधे पद खाली हैं। बता दें कि राज्य में 37 जिला, 70 रेफरल, 55 अनुमंडल अस्पताल हैं। खाली हैं।

Input : Hindustan

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