भोपाल . जाह्नवी…जी हां, मां गंगा का एक नाम यह भी है। जिस तरह मां गंगा को जीवनदायिनी कहा गया है, ठीक उसी तरह राजधानी की जाह्नवी ने एक बहन का फर्ज बखूबी निभाया है। रक्षाबंधन (15 अगस्त) से ठीक एक माह पहले अपने भाई को जिंदगी का तोहफा देने वाली जाह्नवी से जीवनदायनी तक की दास्तां बिल्कुल किसी योद्धा की तरह है।

Donated liver to save brother's life

आकृति ईकाे सिटी निवासी जाह्नवी दुबे(41) कंसल्टिंग कंपनी केपीएमजी में कार्यरत हैं। उनका मायका जबलपुर में है। उनके भाई जयेंद्र पाठक (26) को करीब 10 दिन से बुखार था। परिवार के लोग भी इस बुखार को सामान्य समझ बैठे। डॉक्टर भी बीमारी को ठीक से पकड़ नहीं पाए। मर्ज बढ़ता गया तो जयेंद्र को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। डॉक्टरों ने बताया कि जयेंद्र का लिवर 90% तक डैमेज हो चुका है। अब उनके बचने की संभावना बिल्कुल भी नहीं है। यह बात भोपाल में जाह्नवी, उनके पति प्रवीण दुबे और बेटे प्राचीश को पता चली तो सब घबरा गए।

मरीज के बचने की संभावना सिर्फ 10%, बहन का फोकस इसी पर

डॉक्टरों से बात की तो कहा गया कि मरीज के बचने की संभावना सिर्फ 10 फीसदी है। बस अब जाह्नवी का पूरा फोकस इसी 10 फीसदी पर हो गया। उन्होंने डॉक्टरों से पूछा- इस 10 फीसदी में हम क्या कर सकते हैं? डॉक्टर बोले- मरीज को तत्काल दिल्ली के मेदांता हॉस्पिटल ले जाएं और जितनी जल्दी हो सके लिवर ट्रांसप्लांट करा लें, तभी जान बच सकती है।

बहन बोली- गोद में खिलाया है, 15 साल छोटा है भाई

प्रवीण ने बताया कि 14 जुलाई को मैं, जाह्नवी और हमारा 14 वर्षीय बेटा प्राचीश जबलपुर के लिए रवाना हुए। जाह्नवी पूरे रास्ते एक ही बात कह रही थी- मैंने अपने भाई को गोद में खिलाया है, वो मुझसे 15 साल छोटा है उसे किसी कीमत पर जाने नहीं दूंगी। मैं उसे लिवर दूंगी। हम जबलपुर पहुंचे। दोपहर करीब 12:30 बजे एयर एंबुलेंस दिल्ली के लिए रवाना हो गई। जाह्नवी भी अपने भाई के साथ दिल्ली चली गई। वह जल्द भाई का लिवर ट्रांसप्लांट कराना चाहती थी। प्रवीण ने बताया कि 15 जुलाई को सुबह जाह्नवी और उनके भाई का ऑपरेशन होना था। जबलपुर से कोई फ्लाइट नहीं थी, इसलिए मैं बेटे के साथ ट्रेन से दिल्ली के लिए रवाना हुआ।

बहनोई ने भी दिया साथ, कहा- जिंदगी बचाने के लिए रिस्क मंजूर है

डॉक्टरों को जाह्नवी के ऑपरेशन की प्रक्रिया शुरू करने से पहले मेरी सहमति चाहिए थी। अस्पताल के सीनियर डॉक्टरों ने मुझे फोन किया और बताया कि इस ऑपरेशन में मेरी पत्नी की जान भी जा सकती है। क्या आप इसके लिए तैयार हैं। मैंने कहा- हां, तैयार हूं। फिर डॉक्टरों ने कहा- इस सर्जरी के 13 तरह के खतरनाक रिस्क और भी हैं। डॉक्टर मुझे इसकी जानकारी देने लगे। मैंने इंकार कर दिया, कहा- ईश्वर पर मुझे पूरा विश्वास है, आप ऑपरेशन कीजिए। जाह्नवी ऑपरेशन से पहले मुझसे और बेटे से मिलना चाहती थी, लेकिन ट्रेन लेट हो गई। ऐसे में जाह्नवी ने ओटी से ही एक डॉक्टर के फोन से मुझे फोन किया और बात की। ऑपरेशन शुरू हो चुका था। मैं और मेरा बेटा करीब 1 घंटे बाद मेदांता अस्पताल पहुंचे। 13 घंटे तक अस्पताल की लॉबी में ही बैठे रहे। सोमवार रात करीब 9:30 बजे ऑपरेशन खत्म हुआ।

बेटे को पेपर दिलाने के लिए लौटना पड़ा भोपाल

दुबे ने बताया ऑपरेशन के बाद मैंने दूर से जाह्नवी को देखा, लेकिन बच्चे को अंदर जाने नहीं दिया। प्राचीश डरा-डरा था। वह मंगलवार को मां से मिल पाया। गुरुवार को प्राचीश का पेपर था इसलिए मैं बुधवार की फ्लाइट से उसके साथ भोपाल आ गया। पेपर दिलाने के बाद हम शनिवार को दिल्ली रवाना हो गए।

अब चेहरे पर सुकून

प्रवीण ने बताया कि जयेंद्र अब होश में आ चुका है। परिजनों को भी पहचान लेता है। अच्छी बात यह है कि जाह्नवी का लिवर जयेंद्र की बॉडी में काम करने लगा है। अब वो पूरी तरह खतरे से बाहर है। जाह्नवी को अभी 15 दिन तक अस्पताल में ही भर्ती रहना होगा । उसके बाद भी उसे लंबे समय तक डॉक्टरी देखभाल की जरूरत पड़ेगी। एनेस्थीसिया का असर कम होने के चलते जाह्नवी को थोड़ी तकलीफ है, लेकिन भाई की जिंदगी बचाने का सुकून उसके चेहरे पर है।

गर्व है कि जिंदादिल शख्सियत है मेरी पत्नी

प्रवीण दुबे बताते हैं कि जाह्नवी और मेरी शादी को 16 साल हो गए हैं। जब जाह्नवी ने लिवर डोनेट करने की बात कही तो मैं डर गया था। लेकिन मैंने निर्णय ले लिया था कि मुझे हर हाल में उसका साथ देना है। मुझे गर्व है कि जाह्नवी जैसी जिंदादिल शख्सियत मेरी पत्नी है।

Input : Dainik Bhaskar

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