आज की दुनिया में अर्थव्यवस्था से लेकर राजनीति तक सभी कुछ ऊर्जा क्षेत्र से निर्धारित होता है. दुनिया की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए जीवाश्म ईंधन के उपयोग पर दबाव है ही, लेकिन इस तरह के ईंधन से प्रदूषण और अन्य जलवायु संकटों के कारण इनके विकल्पों को अपनाने का भी दबाव है. ऐसे वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत के तौर पर सौर ऊर्जा एक अच्छा विकल्प है. सौर ऊर्जा के साथ बड़ी समस्या यह है कि वह रात को उपलब्ध नहीं है, लेकिन नए सोलर सेल ने इसका हल खोज लिया जिससे रात को भी बिजली पैदा की जा सकेगी.
सौर ऊर्जा का महत्व
पिछले कई दशकों में एक बड़ा बदलाव यही आया है कि हमारा ऊर्जा उपयोग बिजली पर ही केंद्रित हो रहा है. इसीलिए सौर ऊर्जा से बिजली पैदा करना ही उसका एक लक्ष्य जैसा हो गया है. परंपरागत सौर तकनीक में सोलर सेल या सौर पैनल सूर्य से आने वाले प्रकाशको अवशोषित करते हैं, जिससे बिजली पैदा होती है. लेकिन नई तकनीक में उल्टे तरह से काम हो सकता है.
पूरी तरह से उल्टी प्रक्रिया
बात अजीब लगती है, लेकिन सच यही है कि कई ऐसे पदार्थ हैं जिनमें परंपरागत सौर पैनल की उल्टी प्रक्रिया से बिजली पैदा हो सकती है. इनमें रात को जब ऊष्मा पदार्थ से बाहर की ओर निकलती है तब बिजली पैदा होती है. ऑस्ट्रेलिया में इंजीनियरों की एक टीम ने इस सिद्धांत का क्रियान्वयन कर प्रदर्शन किया है.
कम ऊर्जा से भी उम्मीद
यह तकनीक सामान्यतः रात में देखने के लिए उपयोग में लाए जाने वाले गॉगल्स में उपयोग में लाई जाती है. अभी तक इस नई तकनीक के प्रोटोटाइप ने बहुत ही कम मात्रा में ऊर्जा पैदा की है और जल्दी ही एक वैक्ल्पिक ऊर्जा स्रोत के तौर पर विकसित होने में भी शायद समय लग जाए, लेकिन अगर इस तकनीक को वर्तमान फोटोवोल्टेक्स तकनीकी के साथ जोड़ दिया तो यह दिन भर से गर्म हो रहे सोलर सेल के ठंडे होने से मिलनेवाली ऊर्जा का उपयोग कर सकती है.
कैसे काम करती है यह प्रणाली
फोटोवोल्टेक्स प्रक्रिया में सूर्य की रोशनी को कृत्रिम तरीके से सीधे बिजली में बदला जाता है. यह सौर ऊर्जा के उपयोग का सबसे प्रचलित तरीका है. इस लिहाज से थर्मोरेडिएटिव प्रक्रिया भी इसी तरह से काम करती है जिसमें इंफ्रारेड तरंगों के जरिए अंतरिक्ष की ओर जा रही ऊष्मा ऊर्जा का उपयोग होता है. किसी भी पदार्थ में परमाणु में जब ऊष्मा से का प्रवाह होता है तो इलेक्ट्रॉन इन्फ्रारेड तरंगों के रूप में विद्युतचुंबकीय विकिरण करने लगते हैं. बहुत की कम क्षमता वाली इस प्रकिया से धीमी बिजली पैदा की जा सकती है.
खास डायोड की भूमिका
बहुत की कम क्षमता वाली इस प्रकिया से धीमी बिजली पैदा की जा सकती है. इसके लिए एक दिशा में इलेक्ट्रॉन प्रवाह वाले उपकरण की जरूरत होती है जिसे डायोड कहते हैं. इसमें ऊष्मा गंवाने पर इलेक्ट्रॉन नीचे की ओर जमा होते है. शोधकर्ताओं ने मरकरी कैडमियम टेल्यूराइड के बने डायोड का उपयोग किया जो इन्फ्रारेड प्रकाश को पकड़ने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. अभी तक यह पता नहीं था कि इसका उपयोग कारगर तरीके से ऊर्जा स्रोत के रूप में कैसे किया जा सकता है.
बहुत कम ऊर्जा
एक एमसीटी फोटोवोल्टेक डिटेक्टर ने 20 डिग्री की गर्मी तक 2.26 मिलीवाट प्रति वर्ग मीटर के घनत्व की ऊर्जा निकाली थी. इससे कॉफी के लिए पानी तक नहीं उबल सकता है. अभी के थर्मोरेडिएटिव डायोज बहुत कम ऊर्जा दे रहे हैं लेकिन इस तकनीक को आगे ज्यादा क्षमता वाली बनाया जा सकता है. लेकिन असल चुनौती इस तकनीक की ही खोज थी.
फिलहाल ग्रह को ठंडा करने की प्रक्रिया का उपयोग कर निम्न ऊर्जा विकिरण के स्रोत के रूप में करने पर बहुत से काम चल रह हैं जिनमें से एक इस अध्ययन में किया गया. इस तकनीक की क्षमता को बढ़ाने से बैटरी को बदलने या हटाने से मुक्ति मिल सकती है. इस तरह की तकनीक केवल एक शुरुआत ही भर है.
Source : News18