साहस हो तो मौत को भी मात दी जा सकती है, यह साबित कर दिखाया है, मध्य प्रदेश के विदिशा जिले की सोनम दांगी ने। सोनम पूरी रात नदी में लहरों से जूझती रही। दूसरे दिन उन्हें नदी से निकाले जाते समय रेस्क्यू टीम की नाव पलट जाने से वह दोबारा बह गई। 16 किमी दूर तक बहने के दौरान उन्हें एक लकड़ी का सहारा मिला। वह कहती हैं कि मुसीबत की इस घड़ी में वह ईश्वर के साथ अपने इकलौते 12 वर्षीय बेटे को याद करती रही। बेटे की याद ने उन्हें जिंदगी के लिए संघर्ष करने की ताकत दी। आखिर में वह जिंदगी की जंग जीत गई।
ऐसे हुआ हादसा
रेस्क्यू दल का नेतृत्व करने वाले जिला होमगार्ड के कमांडेंट शशिधर पिल्लई ने बताया कि गुरुवार की शाम जिले के गंजबासौदा निवासी कल्लू दांगी अपनी बहन सोनम को मोटरसाइकिल पर बैठाकर पडरिया गांव (सोनम की ससुराल) से अपने घर आ रहे थे। रास्ते में बेतवा नदी के बर्रीघाट पुल पर उनकी मोटरसाइकिल फिसल गई। इस दौरान सोनम नदी में जा गिरी। कल्लू उनको बचाने के लिए नदी में कूदे, मगर बचा नहीं सके। अंधेरा हो जाने के कारण बचाव अभियान भी नहीं चलाया जा सका। इस दौरान सोनम करीब आठ किमी बहते हुए सिंरोज रोड स्थित निर्माणाधीन पुल के पास पहुंच गई। सोनम ने बताया कि भारी बारिश हो रही थी। बिजली कड़क रही थी। लेकिन, मुझे अपने बेटे का चेहरा याद आ रहा था। मैंने खुद को हिम्मत दी कि मुझे अपने बच्चे के लिए जीना है। इसी सोच के साथ मैंने निर्माणाधीन पुल के पिलर के सरिया को पकड़ लिया और सारी रात ऐसे ही गुजार दी।
ऐसे बची जान
शुक्रवार तड़के पांच सदस्यीय दल ने बचाव अभियान शुरू किया। एक घंटे के भीतर ही नदी में उनको खोज लिया गया। दल ने उनको निकाला और लाइफ जैकेट पहनाकर नाव में बैठाया। इसी दौरान नदी का बहाव तेज होने के कारण नाव पलट गई। दल के सदस्य तैराक होने के कारण किनारे पर पहुंच गए, लेकिन वह नदी में बहती चली गई। इस बार उनको एक लकड़ी का सहारा मिला। पिल्लई ने बताया कि सोनम जब दोबारा बह गईं तो करीब तीन घंटे तक स्थानीय प्रशासन की मदद से उनकी खोजबीन चलती रही। सुबह करीब आठ बजे ग्राम राजखेड़ा के पास ग्रामीणों को वह दिखाई दी। स्थानीय युवाओं ने नदी में उतरकर उनको बचा लिया। उन्होंने करीब 16 घंटे तक जिंदगी के लिए संघर्ष किया।
Source : Dainik Jagran