उत्तर बिहार के मछली पालकों के लिए खुशखबरी है। साथ ही जो मछली के शौकीन हैं, उन्हें मुजफ्फरपुर में रोगमुक्त मछलियां उपलब्ध हो सकेंगी। कृषि विज्ञान केंद्र की निगरानी में जिले के दो प्रखंड मीनापुर व पारू में उन्नत प्रजाति की रोहू, कतला व अमूल कांट मछली पालन किया गया है। हैदराबाद मछली उत्पादन केंद्र के दिशा-निर्देश पर मछली पालन किया जा रहा है। 20 दिनों के अंदर किसानों के जलकरों में मछली का जीरा छोड़ा गया है।

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कृषि विज्ञान केंद्र की वरीय वैज्ञानिक अनुपमा कुमारी के अनुसार, उन्नत प्रजाति रोहू, कतला व अमूल कांट कम समय में विकसित होती हैं। उन्नत प्रजाति की रोहू को जयंती रोहू का नाम दिया गया है। ये मछली देसी रोहू से 17 प्रतिशत तेजी से विकसित होती है। अमूल कांट तीन से चार महीने में एक किलो के साइज की हो जाती है। उत्तर बिहार में मिलने वाली अमूल कांट छह से सात महीने में इस साइज की होती है। उन्नत प्रजाति की कतला काफी तेजी से विकसित होती है। बीमारियों का नहीं होता है असरकेवीके के वैज्ञानिकों के अनुसार, इन तीनों उन्नत किस्म की मछलियों पर बीमारियों का असर नहीं के बराबर होता है। देसी मछलियां बहुत संवेदनशील होती हैं। इस पर मछलियों में पाए जाने वाली बीमारियों का असर तेजी से होता है। लेकिन, उन्नत प्रजातियों की मछलियों में बीमारियों से लड़ने की अत्यधिक क्षमता विकसित रहती है। इस कारण इन मछलियों पर बीमारियों का असर नहीं होता है।

5.43 हेक्टेयर में उन्नत प्रजाति का मछली पालन

जिले में 5.43 हेक्टेयर जल क्षेत्र में मछली पालन किया गया है। मीनापुर व पारू के 15 किसानों को केवीके ने 30 हजार जीरा उपलब्ध कराया गया है। मछली पालन की निगरानी केवीके लगातार कर रहा है। मछलियों में हो रही वृद्धि की रिपोर्ट से हैदराबाद मछली उत्पादन केंद्र को अवगत कराया जा रहा है। केवीके सरैया की कार्यक्रम पदाधिकारी सह वैज्ञानिक अनुपमा कुमारी ने बताया कि जिले में पहली बार कृषि विज्ञान केंद्र उन्नत प्रजातियों की रोहू, कतला व अमूल कांट मछली का पालन करा रहा है। जिले के 5.43 हेक्टेयर जल क्षेत्र में मछलियों का विकसित जीरा डाला गया है। ये मछलियां रोगमुक्त हैं।

Input : Hindustan

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