बिहार में व्यक्तित्वों की विविधता रही है और उसी कड़ी के एक विशेष व्यक्तित्व रहे हैं बिहार के तीन बार मुख्यमंत्री  रहे स्वर्गीय भोला पासवान शास्त्री भोला पासवान शास्त्री को बिहार की राजनीति का विदेह कहा जाता है। भोला पासवान शास्त्री सादा जीवन और उच्च विचार के व्यक्तित्व के थे और हमेशा सादगी से जीते रहे. उन्होंने कभी भी निजी तौर पर धन नहीं बनाया और इसी कारण से बिहार की राजनीति (Politics) के वे विदेह कहे गए.

भोला पासवान शास्त्री का जन्म 21 सितंबर 1914 को पूर्णिया जिले के बैरगाछी गांव में एक साधारण दलित परिवार में उनका जन्म हुआ. दरभंगा संस्कृत विवि से शास्त्री की डिग्री लेने के कारण उनकी टाइटिल में शास्त्री लगा था. शास्त्री जी नेहरू जी के निकटतम नेता थे और वे बाबा साहब अम्बेडकर के नेहरू जी से मतान्तर होने के बाजजूद नेहरू जी के साथ रहे. बिहार में भोला पासवान शास्त्री आठवें सीएम थे और उनका तीन मुख्यमंत्रीत्व काल रहा है. फरवरी 1968 से जून 1968 और जून 1969 से जुलाई 1969 फिर जून 1971 से जनवरी 1972 तक.

शास्त्री जी के समकालीन पूर्णिया के सांसद फणि गोपाल सेन थे और दोनों सादगी भरे जीवन शैली के लिए जाने जाते थे. बिहार के तीन बार मुख्यमंत्री रहे भोला पासवान शास्त्री की जयंती पूर्णिया में और पटना में राजकीय स्तर पर आज के दिन मनाई जाती है।

भोला पासवान शास्‍त्री को ऐसे मुख्यमंत्री के रूप में याद किया जाता है जो पेड़ के नीचे जमीन पर कंबल बिछाकर बैठने में संकोच नहीं करते थे. उन्होंने कोई धन संग्रह नहीं किया. उनके परिजन आज भी समान्य जीवन जीते हैं जिन्हें सरकार ने समय-समय पर थोड़ी मदद भी दी है. अब उनके गांव तक जाने के लिए पक्की सड़क बन गई है.

उनकी जयंती के मौके पर भोला पासवान शास्त्री के गांव बैरगाछी और उनके स्मारक स्थल काझा कोठी में माल्यार्पण और सर्वधर्म प्रार्थना सभा की जाती है. वे सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी और सार्वजनिक संपत्ति से खुद को दूर रहने के कारण बिहार की राजनीति के ‘विदेह’ कहे गए. वे 1972 में राज्यसभा सांसद भी मनोनीत हुए और केन्द्र सरकार में मंत्री भी बने. उनका निधन 4 सितंबर 1984 को हुआ था.

नहीं जमा की कोई संपत्ति, भोला पासवान शास्त्री ने मिसाल पेश करते हुए पूर्णिया अथवा अपने गांव बैरगाछी में कोई संपत्ति जमा नहीं की और आम आदमी की तरह जिंदगी जी. यहां तक लाभ के पद से परिजनों को दूर रखा।

उनका गांव घर और उनके परिजन आज भी सामान्य जिंदगी जी रहे हैं. वे मंत्री और मुख्यमंत्री रहते हुए भी पेड़ के नीचे जमीन पर कंबल बिछाकर बैठने में संकोच नहीं करते थे और वहीं पर अधिकारियों से मीटिंग कर शासकीय संचिकाओं का निपटारा भी कर दिया करते थे. अब बिहार की राजनीति में ऐसे ‘विदेह’ की मौजूदगी, सिर्फ शब्दों, भावों, फूलों और आयोजनों और उनके विचारों को याद करने तक ही सिमट कर रह गई है.

रिपोर्ट- राजेंद्र पाठक (News18)

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