आँगन एजुकेशन और तान्या फाउंडेशन द्वारा संचालित आँगन प्ले / प्री स्कूल द्वारा अहियापुर ब्रांच में 10 तथा 11 फ़रवरी को सरस्वती पूजा के अवसर पर एडमिशन चार्ज नहीं लगेगा. संस्था की संचालक ने मुजफ्फरपुर नाउ के कोरेस्पोंडेंट को बताया आज के समय में बच्चों को प्ले स्कूल भेजना एक जरूरत बन गयी है.
बदलते ट्रेंड ने मटेरियल लाइफ को पूरी तरह बदल दिया है. ज़माने के साथ-साथ बच्चों की शिक्षा का स्तर और उनके स्कूल जाने की उम्र भी बदल गई है. पहले जहां 5 साल के बाद बच्चा स्कूल में पहला क़दम रखता था, अब वहीं डेढ़-दो साल की छोटी-सी उम्र में ही पैरेंट्स उसे प्ले स्कूल में भेज रहे हैं. इसके कुछ फायदे इस प्रकार हैं –
बच्चे सामाजिक बनते हैं
चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट अंशु कुलकर्णी के अनुसार, स्कूल के पहले प्ले स्कूल में बच्चों का एडमिशन कराने से वो सामाजिक बनते हैं. बहुत से बच्चे ऐसे होते हैं, जो घर के लोगों के अलावा बाहरी लोगों से बात करने में हिचकिचाते हैं. दूसरों से डरते हैं. प्ले स्कूल में जाने से वो दूसरे बच्चों और टीचर के संपर्क में आते हैं, जिससे धीरे-धीरे उनकी हिचक दूर हो जाती है.
शेयरिंग की भावना विकसित होती है
घर में प्यार-दुलार की वजह से बच्चे अपनी चीज़ों के इतने आदी हो जाते हैं कि किसी दूसरे के छूने मात्र से वो रोना या चिल्लाना शुरू कर देते हैं. प्ले स्कूल में एक ही खिलौने से कई बच्चों को खेलते देख और एक ही झूले पर बारी-बारी से दूसरे बच्चों को झूलते देख उनमें समझदारी और शेयरिंग की भावना विकसित होती है.
स्कूल जाने में मदद
3 साल तक आपके साथ रहने से बच्चे को आपकी और परिवार की आदत हो जाती है. ऐसे में जब पहली बार उसे आप स्कूल के गेट तक छोड़ने जाती हैं, तो वो आपको छोड़ना नहीं चाहता. आपसे दूर जाने पर वो बहुत रोता है. आपकी दशा भी कुछ ऐसी ही होती है. ऐसे में शुरुआत से ही जब बच्चा आपसे कुछ घंटे ही सही, दूर रहने लगता है, तो वो सेपरेशन ब्लू यानी आपसे दूर जाने की बात को आसानी से सह लेता है.
क्विक लर्नर
कम उम्र में ही प्ले स्कूल में जाने से बच्चे में सीखने की प्रवृत्ति बढ़ती है. टीचर द्वारा सिखाए पोएम को वो बार-बार दोहराता है. इससे उसका आधार मज़बूत होता है. स्कूल जाने के बाद उसे चीज़ों को समझने में आसानी होती है.
पैरेंट्स भी यूज़ टू होते हैं
फर्स्ट टाइम पैरेंट्स बने कपल्स के लिए स्कूल में बच्चे के एडमिशन से लेकर उसे स्कूल भेजने तक का काम किसी चुनौती से कम नहीं होता. बच्चे के साथ उनके लिए भी ये नया अनुभव होता है. ऐसे में कई बार ख़ुद पैरेंट्स ही बच्चों से दूर जाने पर रोने लगते हैं, तो कई स्कूल सही समय पर नहीं पहुंच पाते. प्ले स्कूल के ज़रिए उन्हें स्कूल के नियम-क़ानून को समझने में मदद मिलती है.
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