भारत-चीन के सैनिकों के बीच लद्दाख की गलवान वैली में हुई हिंसक झड़प में बिहार के 5 जवान शहीद हो गए थे, जिसमें पटना के बिहटा के हवलदार सुनील कुमार भी थे. गलवान घाटी में हुए चीन के सैनिकों का सामना करते हुए हमारे देश के यह वीर जवान भी अदम्य साहस और कर्तव्य निष्ठा का परिचय देते हुए वीरगति को प्राप्त हुए. हवलदार सुनील को मरणोपरांत सेना मेडल से सम्मानित किया गया. यह सम्मान उन्हें मरणोपरांत भले ही मिला लेकिन पटना जिला के दानापुर बिहटा या यूं कहें बिहार या पूरा देश सबने इनके बलिदान को सैल्यूट किया. आज भले ही हमारे बीच यह नहीं है लेकिन इनकी शौर्यवीरता की गाथा हमारे लिए हमारे देश के लिए हमेशा प्रेरणादायक रहेगी.
दानापुर में रहने वाले मूल रूप से पटना के बिहटा के रहने वाले सेना मेडल शहीद सुनील कुमार भी चीनी सैनिकों से लोहा लेने में शामिल थे, जो बिहार रेजिमेंट के 16 बिहार बटालियन के हवलदार थे. सैन्य संख्या 4281978P हवलदार सुनील कुमार ने 16 वीं बटालियन के बिहार रेजीमेंट में सेवार्थ रहते हुए 15 जून 2020 को गलवान घाटी में अदम्य साहस सूर्यवीरता, पराक्रम और बलिदान भाव की परिचय देते हुए राष्ट्रीय सेवा में अपना सर्वत्र न्योछावर किया और वीरगति को प्राप्त हुए.
क्या मलाल है शहीद की पत्नी को?
फिलहाल उनकी पत्नी उनके भाई उनका पूरा परिवार दानापुर के सगुना मोड़ के समीप डीएसपी कार्यालय के सामने रहते हैं. यहां उनका अपना मकान है आज पूरा मोहल्ले वाले इनके बलिदान पर गर्व करते हैं. शहादत के बाद इस मामले में सरकार के तरफ से भी मदद करते हुए उनकी पत्नी को एसडीओ कार्यालय दानापुर में एलडीसी क्लर्क की नौकरी दी है. सरकार ने और सेना ने लगभग सारे मदद दिए हैं, लेकिन शहीद सुनील की पत्नी रीति ने बताया कि आज भी यह मलाल है कि उनके पति सुनील कुमार के नाम पर अधिकारियों नेताओं ने बीहटा के पितांबरपुर चौराहे पर मूर्ति स्थापित करने को कहा था जो आज तक नहीं हुआ. साथ ही शहीद सुनील अपने बेटे को एक बड़े पदाधिकारी बनाना चाहते थे और इसके लिए अपने बच्चे को बड़े स्कूल में पढ़ाना चाहते थे लेकिन उनकी शहादत के बाद पत्नी ने बेटे को संत माइकल स्कूल में नामांकन कराना चाहा, लेकिन संत माइकल स्कूल ने उनका एडमिशन तक नहीं लिया जिसका मलाल आज भी इन्हें है.
कई नेताओं ने स्टैच्यू स्थापित करने का आश्वासन दिया था: शहीद का साला
वहीं शाहिद सुनील का साले चंदन का कहना है कि हमारे जीजा शाहिद सुनील कुमार ने देश के लिए बलिदान दिए और आज उनकी शहादत के बाद पूरा देश गर्व करता है. उनकी शहादत हुई थी उस वक्त कई नेता और अधिकारी आए थे और उनकी स्टैच्यू स्थापित करने का आश्वासन दिया था, जो आज तक नहीं हुआ. हम सभी अधिकारियों और नेताओं के पास दौड़ लगा चुके हैं और आज तक सिर्फ आश्वासन मिला है.
सगुना मोड़ मोहल्ले में सुनील के पड़ोसियों का कहना है कि सुनील कुमार जब भी अपने घर आते थे तब हम लोगों को काफी खुशी से मिलते थे. वह हमसे घुल मिलकर रहते थे और हमे आगे बढ़ने की प्रेरणा भी देते थे. उनका व्यवहार सबसे बेहतर और अलग था. आज उन्होंने देश के प्रति जो बलिदान दिया है उससे हम मोहल्लेवासी को हमें गर्व महसूस होता है कि हम उनके पड़ोसी हैं.
क्या कहना है शहीद के भाई का
वही उनके बड़े भाई अनिल का कहना है कि हमें अपने भाई के शहादत पर गर्व है. उन्होंने देश के लिए जान न्यौछावर कर दिया. सुनील को हमने अपने बेटे की तरफ पालन पोषण किया और वह शुरू से ही वर्दी के दीवाना था. उसे हमने सिविल की तैयारी करने को कहा, लेकिन वह देश सेवा के लिए वर्दी पहनना चाहता था, तो हमने आर्मी मैन के कोटे से उन्हें आर्मी में भर्ती करवा दिया और आर्मी में रहते उन्होंने कई मेडल और सील्ड जीतें. अंत में उन्होंने देश के खातिर अदम्य साहस का परिचय देते हुए अपनी जान न्यौछावर कर दिया और वह वीरगति को प्राप्त हुए. जिससे हमें तो गर्व है ही साथ ही देश को भी गर्व है उनके मरणोपरांत उन्हें सेना मेडल भी दिया गया जो अच्छे अच्छे लोगों को भी प्राप्त नहीं होता अपने भाई पर गर्व है.
बरहाल मूल रूप से बिहटा के रहने वाले हैं और वर्तमान में दानापुर में रह कर देश सेवा में बलिदान देने वाले सुनील की पत्नी को अपने बेटे का संत माइकल स्कूल में एडमिशन नहीं होना और अपने पति का स्टेच्यू नहीं बनने का मलाल आज भी है ऐसे में इनका अगर दोनों काम पूरा हो जाए तो सुनील कुमार की बलिदान सफल हो जाएगी।
Source : News18