केंद्रीय स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री हर्षवर्धन शनिवार को मुजफ्फरपुर में थे। वे एईएस  बीमारी से हाे रही मौत का जायजा लेने गए थे। उन्‍होंने म‍ीडिया से बात की। अधिकारियों के संग बैठक की और उन्‍हें कई निर्देश दिए। उनके साथ केंद्रीय स्‍वास्‍थ्‍य राज्‍यमंत्री अश्विनी चौबे व बिहार के स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री मंगलवार पांडये भी थे। हर्षवर्धन ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि चमकी बुखार से हो रही मौत दुखदायी है। उन्‍हाेंने एईएस की रोकथाम के लिए हाई क्‍वालिटी रिसर्च सेंटर बनाए जाने की बात कही। इसके लिए साल भर की डेडलाइन भी रखी गई है। उन्‍होंने कहा कि इसके लिए बिहार सरकार से भी बात हो रही है। बिहार सरकार को केंद्र हर संभव मदद करेगा। उन्‍होंने कहा कि साल भर के अंदर रिसर्च सेंटर बनकर तैयार हो जाएगा और इस बीमारी पर रिसर्च कर इसे रोका जाएगा, ताकि आगे बीमारी कहर बनकर नहीं आए। आगे बच्‍चों की मौत नहीं हो।

मौत के कारणाें की निरंतर जांच होगी

उन्‍होंने कहा कि उत्तर बिहार के जिलों में एईएस (एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रॉम) से बच्चों की मौत के कारणों की जांच निरंतर जारी रहेगी। इसके लिए मुजफ्फरपुर में उच्चस्तरीय रिसर्च सेंटर की स्थापना की जाएगी। इसके लिए देशी के सभी बड़े रिसर्च सेंटरों एनआइवी पुणे, एनसीडीसी, नई दिल्ली, एम्स आदि की मदद ली जाएगी। उन्होंने कहा कि बीमारी के कारणों को लेकर अलग-अलग बातें कही जा रहीं। हमारे लिए इस कारण को जानना जरूरी है, इसलिए इसके लिए लगातार रिसर्च होंगे। इस सेंटर के लिए तकनीकी व वित्तीय मदद केंद्र सरकार देगी।

100 बेड की पीआइसीयू का भी होगा निर्माण

मंत्री हर्षवर्धन ने कहा कि बीमार बच्चों के बेहतर इलाज के लिए एसकेएमसीएच परिसर में अलग से 100 बेड की पीआइसीयू (शिशु गहन चिकित्सा इकाई) अगले वर्ष तक तैयार हो जाएगी। अभी बच्चों का इलाज अस्पताल स्तर से तैयार अस्थाई पीआइसीयू में हो रहा। इसी परिसर में नए पीआइसीयू का निर्माण होगा। उन्होंने कहा कि बीमारी के प्रमुख कारण में गर्मी व नमी को भी बताया जा रहा है। इसे देखते हुए स्वास्थ्य विभाग अर्थ विज्ञान विभाग से मदद लेकर एक्शन प्लान तैयार कराया जाएगा, ताकि क्षेत्र विशेष को लेकर अधिक अध्ययन किया जा सके।

बीमार बच्चों को जल्द से जल्द लाने की सुविधा पर भी ध्यान 

मंत्री ने कहा कि करीब 100 बीमार बच्चों को उन्होंने देखा। इसमें एक बात सामने आई कि बीमार होने के तुरंत बाद अस्पतालों में आने वाले बच्चों के ठीक होने की अधिक संभावना रहती है। इसे देखते हुए बच्चों को अस्पताल पहुंचाने की व्यवस्था पर भी फोकस रहेगा। अतिरिक्त एंबुलेंस के अलावा रास्ते में ही इलाज की व्यवस्था कराई जाएगी। उन्होंने कहा कि बीमार बच्चों के खून में शुगर की मात्रा काफी कम हो जाती है। इसे देखते हुए पीएचसी व सीएचसी में भी विशेषज्ञ चिकित्सकों की मदद से इन बच्चों को ग्लूकोज के अतिरिक्त डोज देने की व्यवस्था रखी जाएगी।

इलाज की वर्तमान व्यवस्था पर जताया संतोष

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने एसकेएमसीएच में एईएस पीडि़त बच्चों के इलाज की व्यवस्था पर संतोष जताया। उन्होंने कहा कि विषम परिस्थिति में यहां के चिकित्सक व कर्मी बेहतर इलाज कर रहे। अगले वर्ष जब 100 बेड की पीआइसीयू तैयार हो जाने के बाद परेशानी थोड़ी कम हो जाएगी।

वायरस की आशंका से भी इन्कार नहीं 

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि बीमारी के कारणों में वायरस भी हो सकता है। इसकी जांच के लिए वायरोलॉजिकल लैब की जरूरत है। एसकेएमसीएच परिसर में इसके लिए आधारभूत संरचना है। कुछ माह में इस लैब पर काम शुरू करना है। इसके अलावा यहां एक महामारी विशेषज्ञ की भी नियुक्ति अविलंब की जाएगी।

भर्ती बच्‍चों को देखा, परिजनों से बात की

इससे पहले डॉ. हर्षवर्धन ने एसकेएमसीएच की सभी पीआइसीयू में भर्ती एईएस पीडि़त बच्चों को देखा। एक चिकित्सक के रूप में 100 बच्चों का बीएचटी (बेड हेड टिकट) की भी पड़ताल की। बच्चे में क्या-क्या लक्षण थे। इसके बाद क्या किया, रात में क्या खाया था, दिन में कहां-कहां गया था, ये सवाल बच्चों के परिजनों से की। इसके अलावा चिकित्सकों से भी तय इलाज की जानकारी ली। इसके बाद प्रशासनिक व चिकित्सा पदाधिकारियों के साथ बैठक की। बैठक में उनके साथ केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी चौबे, प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय, प्रधान सचिव संजय कुमार आदि शामिल थे।

Input : Dainik Jagran

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