IGNOU Course: मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) के पीजी डिप्लोमा इन क्लीनिक कॉर्डियोलॉजी को मान्यता देने से इंकार कर दिया है। जिससे डिप्लोमा करने वाले करीब 1700 एमबीबीएस डॉक्टरों का भविष्य खतरे में पड़ गया है। एमबीबीएस डॉक्टरों को हृदयरोग के मामलों में प्रशिक्षण देने के लिए इग्नू ने वर्ष 2006 में यह डिप्लोमा शुरू किया था, जो 2013 में बंद कर दिया गया था।
बोर्ड ऑफ गवर्नर्स ने अपने फैसले में कहा है कि यह कोर्स पोस्ट ग्रेजुएशन मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पीजीएमईआर)-2000 की अनुसूची में शामिल नहीं है। पहले बैच के उत्तीर्ण होने के बाद अनिवार्य रूप से होने वाली जांच इग्नू की ओर से नहीं कराई गई है।
इग्नू ने यह डिप्लोमा अस्पतालों के माध्यम से कराया, जिससे इस बात की तस्दीक नहीं होती कि पीजीएमईआर के नियमन आठ का पालन हुआ। कहा गया कि इग्नू का यह कोर्स मेडिकल क्षेत्र में उत्कृष्टता को बढ़ावा नहीं देता है। उल्टे यह लोगों के बीच कार्डियोलॉजी में विशेषज्ञता के बारे में गलत धारणा बनाता है। इसलिए हम 2006 से 2013 तक चले इस कार्यक्रम को आईएमसी एक्ट 1956 की पहली अनुसूची में शामिल नहीं कर सकते।
बता दें एसोसिएशन ऑफ क्लीनिकल कॉर्डियोलॉजिस्ट की याचिका पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने पिछले साल सितंबर में एमसीआई और स्वास्थ्य मंत्रालय को इस मामले में अंतिम फैसला लेने का निर्देश दिया था।
1700 डॉक्टर खो देंगे’ :
बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के फैसले पर इग्नू के स्कूल ऑफ हेल्थ साइंस के निदेशक डॉ. टीके जेना ने ‘हिन्दुस्तान’ से कहा कि प्रसिद्ध हृदयरोग विशेषज्ञ एवं नारायण हृदयालय के संस्थापक डॉ. देवी शेट्टी के साथ मिलकर हमने यह कोर्स शुरू किया था। कोर्स तैयार करने में डॉ. देवी शेट्टी ने प्रमुख भूमिका निभाई थी। इसके तहत छात्रों को दो साल की कड़ी ट्रेनिंग दी जाती थी। इसे मान्यता न देने से छात्रों की मेहनत बेकार हो जाएगी, साथ ही देश हृदयरोग में प्रशिक्षित 1700 डॉक्टरों से वंचित हो जाएगा।