कुछ लोग आज भी समझते हैं कि गांव की लड़कियां सिर्फ चूल्हा चौका करने के लिए होती हैं। ऐसे लोगों को IPS सरोज की कहानी पढ़नी चाहिए। बचपन में माता-पिता के साथ खेत में काम करने वाली लड़की सरोज बड़ी होकर जब अपने गांव लौटी तो कभी उसके परिवार को उसकी शादी न करने के लिए ताने मारने वाले लोगों का सीना गर्व से चौड़ा हो गया।
राजस्थान के झुंझुनू जिले की सरोज ने IPS अधिकारी बनकर अपने गांव बुधानिया के लोगों की बेटियों के प्रति सोच बदल दी है। सरोज कहती हैं कि गांववालों से मिल रहा सम्मान उनके लिए खुशी की बात इसलिए भी है क्योंकि बेटियों को लेकर लोगों की सोच बदली है। उन्होंने बताया कि अब उनके गांव में लोग बेटियों को भी पढ़ने भेजने लगे हैं और उन्हें नौकरी करने की इजाजत दे रहे हैं।
सरोज जब वह तीन साल की थीं तो उनके पिता सेना से रिटायर हो गए। घर चलाने के लिए वह खेती और मजदूरी करने लगे। सरोज और उनके भाइयों ने पिता की मदद की। वह बताती हैं कि उनके परिवार पर उनकी शादी करने के लिए दबाव बनाया जाता था लेकिन उनके परिवार ने हमेशा उनका साथ दिया। वह याद करती हैं कि उनकी मां को हमेशा से भरोसा था कि एक दिन सरोज अफसर जरूर बनेंगी।
वह ग्रैजुएशन के लिए जयपुर गईं। वहां पोस्ट ग्रैजुएशन और फिर चुरू के सरकारी कॉलेज से एमफिल किया। 2010 में यूपीएससी की परीक्षा दी। सरोज सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी और वर्तमान राज्यपाल किरण बेदी से हमेशा प्रभावित रही हैं। बोटाड में अपनी पोस्टिंग के दौरान उन्होंने सेक्स वर्कर्स के लिए काफी काम किया जिसके लिए उनकी काफी सराहना भी हुई। उन्होंने साल 2014 में गणतंत्र दिवस की परेड की आगवानी भी की। वह माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करने वाली टीम का हिस्सा भी रह चुकी हैं।
किरण बेदी की स्टोरी पढ़कर सरोज कुमारी को लगा कि मैं भी उनकी तरह बन सकती हूं। पर खेतों में काम करना फिर गाय-भैंस का दूध दुहना जैसे कामों को करने वाली कभी इतने महत्वपूर्ण पद तक कैसे पहुंच सकती है। लेकिन मैंने किरण बेदी से प्रेरणा ली और संकल्प किया कि मुझे भी इनकी तरह बनना है। ध्येय सामने था, आवश्यकता थी लगन की, जिससे मैंने पूरे जोश के साथ आगे बढ़ पाई।
एक दिन मैं अपने माता-पिता के साथ खेत में काम कर रही थी, तभी हवा के एक झोंके के साथ मेरे हाथ में आई अखबार की एक कटिंग, जिस पर किरण बेदी की स्टोरी थी। मैंने वह कटिंग अपने भाई को बताई, तो उसने कहा कि तुम भी किरण बेदी की तरह महिला पुलिस अधिकारी बन सकती हो। बस मैंने तय कर लिया कि अब पुलिस की अधिकारी बनकर ही दम लूंगी। आखिर मेरा सपना साकार हुआ। मुझे इस बात का गर्व भी है।
वर्ष 2011 बेच की गुजरात केडर की IPS अधिकारी सरोज कुमारी ने बताया कि मैं जिस गांव और समाज से आई हूं, वहां IPS बनना मुश्किल था। मेरे पिता आर्मी में थे, परंतु वे 1987 में ही सेवानिवृत्त हो गए थे। उस समय उनकी पेंशन के 700 रुपए और खेती से होने वाली आय में हम चार भाई-बहन का गुजारा होता था। ऐसे में हमारी पढ़ाई का खर्च निकालना भी मुश्किल होता था। इसके बाद भी मां सुवादेवी ने और पिता द्वारा दिए गए मनोबल से मेरा IPS बनने का सपना पूरा हो गया है। आज जब मैं अपने अतीत को याद करती हूं, तो आंखें गीली हो जाती हैं।
मेरे साथ की सहेलियों की शादी दसवीं या बारहवीं पास करने के बाद हो जाती थी। ऐसे में 12 वीं पास करने के बाद भी मेरी भी शादी का दबाव बढ़ने लगा। पर मेरे माता-पिता ने भी तय कर लिया था कि मुझे IPS बनाना है। जब मैं IPS हुई, तो पूरे गांव के लोगों को खूब आश्चर्य हुआ। वे बताती हैं कि गरीबी के कारण पढ़ाई नहीं हो सकती, यह कहना पूरी तरह से गलत है। यदि आपने ध्येय तय कर लिया है, तो आगे ही बढ़ना है।
Input : Live Rajneeti