बिल्कुल ठीक हेडलाइन पढा आपने और वास्तविक बात भी यही है, बिहार के लोग अपने नेता के आगे लाचार है. वज़ह क्योंकि नेता निश्चिंत है कि बिहार की जनता जायेगी कहा घूम फिर के वोट तो जात के नाम पर ही पड़ना है. ठीक ही है फिर, देते रहिये जात के नाम पर वोट और उठाते रहिये अपनों की अरथी.

बिहार कोरोना और बाढ़ की दोहरी मार झेल रहा है. राष्ट्रीय मीडिया में आप देख रहे होंगे कि कैसे लाश की ढ़ेर पर बिहार खड़ा है, लाशों के बीच लोगो का इलाज हो रहा है, इलाज के लिये कोरोना पॉजिटिव तड़प रहे है लेक़िन फिर भी कोई पूछने वाला नहीं है, धरती पर नरक देखना है तो घूम आइये बिहार में अपने आसपास के सरकारी अस्पताल में.

जात- पात के राजनीति की गुलाम बिहार की जनता में मुर्दा और जिंदा का फर्क ही नहीं समझ आता, चाहे कुछ भी हो जाये वोट ये लोग जात के नाम पर ही देंगे पता नहीं क्यों जात के लिए बिहारी इतना मरते है, बिहार की जनता का इसी कमज़ोरी का नेता फ़ायदा उठाते है और गया विकास तेल लेने जात और धर्म मैनेज कर के नेता जी तो जीत ही जायेंगे.

हम अपने जात वालों को वोट देकर बिहार को बहुत बेकार कल की ओर धकेल रहे है. इसलिये हेडलाइन ऐसा लिखा गया है कि जब जनता ही मुर्दा है तो नेता और प्रशासन कैसे जिंदा होंगें.

बिहार के नेताओं पर एक बार गौर कीजियेगा आप ख़ुद समझ जायेंगे ये किस जात के ठिकदार है, बिहार का हर नेता जात विशेष का ठीकेदार बनकर बैठा है और हम बिहार वाले वोट जो इन्ही ठेकेदार को देते है- बिहार के असली दुर्गति का कारण ही हम बिहारी है क्योंकि हमने वोट ही जात के नाम पर दिया है, नेता तो बस जनता का मिज़ाज भांपते है और जीत जाते है.

अभिषेक रंजन, मुजफ्फरपुर में जन्में एक पत्रकार है, इन्होंने अपना स्नातक पत्रकारिता...