जबलपुर। मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने राष्ट्रीय विधि संस्थान विश्वविद्यालय (एनएलआईयू), भोपाल के विधि छात्र हिमांशु दीक्षित की जनहित याचिका पर राज्य शासन से जवाब-तलब कर लिया है। इसके लिए दो सप्ताह का समय दिया गया है। मामला मध्यप्रदेश मोटरवाहन नियम-1994 के नियम 213 (2) की वैधता को चुनौती से संबंधित है, जिसके तहत राज्य में दोपहिया वाहन चलाने वाली किसी भी महिला या पीछे बैठी महिला के लिए हेलमेट की अनिवार्यता खत्म कर दी गई है। गौरतलब है कि नए मोटर व्हीकल अधिनियम में कई सख्त प्रावधान किए गए हैं, जिसे लेकर कई राज्य सरकारों ने विरोध दर्ज कराया है।

मंगलवार को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय यादव व जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की युगलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान जनहित याचिकाकर्ता ने अपना पक्ष स्वयं रखा। उन्होंने दलील दी कि मोटर वाहन अधिनियम 1988 की धारा 129 के तहत किसी भी सार्वजनिक जगह पर दोपहिया वाहन चलाते समय हेलमेट पहचनना आवश्यक किया गया है।

हालांकि यह प्रावधान किसी भी पगड़ी पहनने वाले सिख चालक या सवार पर लागू नहीं होता। प्रावधान में यह भी लिखा है कि राज्य सरकार चाहे तो वह किसी भी ग्रुप या समुदाय के लिए उक्त प्रावधान में छूट दे सकती है। राज्य शासन ने महिलाओं को हेलमेट को लेकर छूट देकर दुर्घटना की स्थित में जिन्दगी पर संकट खड़ा कर दिया है।

दुर्घटना सिर्फ पुरुष ही नहीं बल्कि महिलाओं के साथ भी हो सकती है। इस तरह साफ है कि मध्यप्रदेश मोटरवाहन नियम-1994 के नियम 213 (2) न केवल संविधान के अनुच्छेद 14, 15 (1), 21 का उल्लंघन करता है बल्कि यह मोटर वाहन अधिनियम 1988 के हेलमेट संबंधी हितकारी प्रावधान की मंशा पर भी कुठाराघात सदृश है।

Input : Nai Duniya

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