कहते हैं कि सहेज कर थोड़ी-थोड़ी चीजें रखी जाएं तो आगे की पीढ़ी के लिए उपयोगी होती हैं। कुछ यही किया मड़वन के बड़का गांव निवासी जयप्रकाश ने। करीब सात दशक पूर्व से उन्होंने अखबारों का संग्रह शुरू किया था। जब तक वे जिंदा रहे, यह कार्य करते रहे। उनका यह संग्रह आज बड़ा रूप ले चुका है। वर्ष 1942 से 2012 तक की प्रमुख घटनाओं से जुड़ी खबरों के अखबारों का यहां संग्रह है। जयप्रकाश की इस थाती को संजोने का काम कर रहे उनके पुत्र विश्वपाल राय।

बापू से लेकर इंदिरा गांधी की हत्या के अखबार मौजूद

गांव के एक छोटे से मकान के एक कमरे में करीब 75 वर्षों के अखबार हैं। बापू की हत्या पर प्रमुख अखबारों में छपी खबरों को देखने के लिए सबसे अधिक लोग यहां आते हैं। तब किस अखबार में क्या हेडिंग लगी थी, उनके लिए यह रोचक विषय होता है। संजय गांधी की हवाई जहाज दुर्घटना में मृत्यु हो या इंदिरा गांधी की हत्या। ये अखबार उन्हें आकर्षित करते हैं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी दिए जाने की खबर के साथ तब के अखबार में कई जानकारियां हैं, जो सभी जगह उपलब्ध नहीं।

कैसे फांसी दिए जाने के आठ घंटे बाद ही उनके शव को दफना दिया गया। किस जेल में फांसी दी गई। किस तरह सूचना को गोपनीय रखा। ये जानकारियां रोमांचित भी करती हैं। प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्र-छात्राओं के लिए यह काफी उपयोगी होता है। उन्हें प्रमुख घटनाओं की जानकारी इन अखबारों से मिल जाती है।

क्रांतिकारी दुर्गा भाभी के नाम से पुस्तकालय

विश्वपाल बताते हैं कि आजादी की लड़ाई में गांव के लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। यहां अंग्रेजों का अत्याचार काफी बढ़ गया था। यहां के करीब 28 लोगों को कालापानी की सजा हुई थी। स्वतंत्रता आंदोलन की मुहिम तेज करने के लिए यूपी के भगवतीचरण वोहरा की पत्नी क्रांतिकारी दुर्गा भाभी यहां आई थीं। बताया जाता है कि भगत सिंह व अन्य स्वतंत्रता सेनानियों ने ही उन्हें दुर्गा भाभी नाम दिया था। उनके नाम की प्रेरणा से ही अखबारों के संग्रह को ‘श्री दुर्गा पुस्तकालय’ नाम दिया गया है।

रखरखाव नहीं होने से बर्बाद हो रहे ये अखबार

विश्वपाल के पुत्र गौरव के अनुसार इन अखबारों को सहेज कर रखने में अब परेशानी हो रही। इसके पन्ने पुराने होकर फट रहे। प्रत्येक वर्ष इसकी साफ-सफाई में ही 10 से 12 हजार खर्च हो जाते। मगर, वे विरासत में इसे संभाल रहे। दूसरे राज्यों से भी लोग यहां अखबार देखने आते हैं। सही तरीके से नहीं रखे होने के कारण कभी-कभी किसी खास वर्ष व तिथि का अखबार निकालने में परेशानी होती है। प्रशासन अगर मदद करे तो इन उपयोगी अखबारों को बचाया जा सकता है।

Input : Dainik Jagran

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