आज जननायक कर्पूरी ठाकुर की जयंती हैं। बिहार की राजनीति में जिन चेहरों को युगांतर तक याद रखा जायेगा,उन्हीं में से एक हैं जननायक कर्पूरी ठाकुर।
पिछड़ों के मसीहा बनकर उभरे कर्पूरी ठाकुर वो शख्शियत हैं जिनके कामों की सराहना हमेशा की जायेगी। बिहार के समाज में जब पिछड़ों की स्थिति दयनीय थीं, उस वक्त वो दबे-कुचले लोगों की आवाज बने। आज 24 जनवरी को उनकी जयंती के अवसर पर हम उन्हें और उनकी उपलब्धियों को याद करेंगे।
कर्पूरी ठाकुर का जन्म समस्तीपुर जिले के पितौझिया गांव में हुआ था।इनके पिता गोकुल ठाकुर साधारण किसान थें। इनके परिवार का पारंपरिक पेशा हजामत था तो इनके पिता नाई का काम भी करते थें। भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान कर्पूरी ठाकुर ने सक्रिय रूप से भाग लिया था। उस दौरान वो करीब ढाई साल जेल में रहे। कर्पूरी ठाकुर बिहार के दूसरे उपमुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं।
आपको मालूम होना चाहिए खासकर बिहार के युवाओं को कि बिहार की राजनीति में एक ऐसा भी व्यक्ति था जो मुख्यमंत्री होते हुए भी अपना एक घर तक नही बनवा सका। पूरी जिंदगी उन्होंने झोपड़ी में गुजार दी। यहां तक कि कई बार ऐसा होता था कि उनके पास ढंग के कपड़े तक नही होते थें। कहा जाता हैं कि एक बार पूर्व पीएम चंद्रशेखर ने अपना कुर्ता फाड़कर उनके लिए चंदा इक्कठा किया था ताकि उनके लिए नया कपड़ा आ सकें।
जनों के प्रिय कर्पूरी ठाकुर के जीवन की कई कहानियां प्रसिद्ध हैं। कहा जाता हैं कि 1952 में जब वो पहली बार एमएलए बने तो उन्हें विदेश जाने का अवसर मिला लेकिन उनके पास कोट नही था तो उन्होंने अपने दोस्त से कोट मांगा। दोस्त ने कोट तो दे दिया लेकिन वो फटा हुआ था,परंतु उससे कर्पूरी ठाकुर को कोई फर्क नही पड़ा और वो फटा हुआ कोट पहन कर ही विदेश चले गए।
कर्पूरी ठाकुर का पूरा जीवन सीखने लायक हैं। आज जहां बिहार की राजनीति हाशिए पर हैं। नेता लोग भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। उस बिहार की धरती पर कभी कर्पूरी ठाकुर जैसा बेटा भी पैदा हुए थें।