अब बिहार के बांका जिले में एक किशोर की मौत मामूली पेट दर्द की वजह से हो गई. परिवार के मुताबिक़ अस्पताल में इलाज नहीं मिला और घर में खाने के लिए अन्न नहीं है.
कोरोना को हराने के लिए पूरे देश सहित बिहार में संपूर्ण बंदी है. लॉकडाउन है. सारे काम-धंधे बंद हैं. शहरों से मज़दूर, कामगार और ग़रीब गांवों की तरफ़ भागे. अपनों की तरफ़ भागे लेकिन अब गांवों में भूख का असर दिखने लगा है. मौक़े पर इलाज के ना मिल पाने का असर दिख रहा है. गांवों में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की कमी हमेशा से रही है, कोरोना की वजह से जो थोड़े-बहुत इंतज़ाम थे वो भी चरमराते दिख रहे हैं.
राज्य के बांका ज़िले में एक 12 वर्षीय किशोर की मौत हो गई है. घटना 10 अप्रैल की है. मृतक अपने नाना-नानी के पास रहता था. परिवार का आरोप है कि लड़के को पेट दर्द हुआ वो अस्पताल ले गए लेकिन किसी ने देखा नहीं. इलाज नहीं मिला और इस वजह से उसकी मौत हो गई.
बांका जिले के बाराहाट प्रखंड अंतर्गत लौढिया खुर्द पंचायत के दुबराजपुर गांव का मामला है. 09 अप्रैल की शाम महावीर लैया के 12 वर्षीय नाती राकेश को पेट में अचानक दर्द शुरू हुआ, जिसके बाद उसे पंजवारा स्थित हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर लाया गया. यहां न तो डॉक्टर थे और न ही नर्स. लाख कोशिश करने के बाद भी जब सेंटर पर किसी से भेंट नहीं हुई तो परिवार के लोग पास की दावा दुकान से पेट दर्द की दवाई लेकर लौट आए.
अगले दिन यानी 10 अप्रैल की सुबह क़रीब सात बजे बच्चे की मौत हो गई. ये परिवार बेहद ग़रीब है. झोपड़ीनुमा घर में रहता है. काम के तौर पर मज़दूरी करता है. लॉकडाउन की वजह से काम-धंधे पूरी तरह से बंद है. इस स्थिति ने परिवार के सामने खाने का संकट पैदा कर दिया है.
परिवार के मुखिया और मृतक के नाना महावीर लैया ने बताया, “लड़का पास की नदी में दूसरे लड़कों के साथ मछली पकड़ने गया था. वहां से लौटा तो पेट दर्द की शिकायत करने लगा. मैं ही एक कमाने वाला हूं. बंदी की वजह से कई दिनों से मज़दूरी नहीं मिली है. बैठा-बैठी है.”
स्थानीय पत्रकार आनंद झा उसी दिन दोपहर को पीड़ित परिवार के पास पहुंचे जिस दिन सुबह सात बजे 12 वर्षीय किशोर राकेश की मौत हुई थी. बक़ौल आनंद झा स्थानीय मुखिया की मौजूदगी में मृतक के नाना और नानी ने कहा कि जिस रात राकेश के पेट में दर्द हुआ था उस रात भी घर में खाना नहीं बना था. कुछ था ही नहीं.
बाराहाट प्रखंड के BDO के मुताबिक़ इस बच्चे की मौत भूख से नहीं हुई है. एशियाविल हिंदी से बात करते हुए वो कहते हैं, “मुझे तो पता ही नहीं चला. बाद में पता चला. परिवार का राशन कार्ड है. उन्होंने तो मार्च का राशन भी उठया है” इसी बातचीत में BDO साहब हमें स्थानीय आयुष डॉक्टर दिनेश कुमार का नंबर देते हैं. उनके मुताबिक़ डॉक्टर दिनेश ने राकेश का इलाज किया था लेकिन जब हमसे बात करते हुए वो कहते हैं, “नहीं, मैंने कोई इलाज नहीं किया. मुझे तो 10 अप्रैल की सुबह क़रीब 9 बजे ख़बर मिली थी तो स्थानीय थाना इंचार्ज के साथ वहां गया था. तब तक तो बच्चे की मौत हो चुकी थी.”
जब हमने डॉक्टर दिनेश कुमार से पूछा कि किस वजह से बच्चे की मौत हुई तो उन्होंने कहा कि उस बारे में वो कुछ भी पक्का-पक्का नहीं कह सकते. हां, बच्चे की मौत कोरोना की वजह से नहीं हुई है.
इस बारे में हमने बांका के ज़िलाधिकारी सुहर्ष भगत से भी बात करनी चाही लेकिन हमारे द्वारा किए गए फ़ोन कॉल्स और एसएमएस का उन्होंने जवाब नहीं दिया. बिहार में कोरोना से अभी तक एक मौत हुई है लेकिन लॉकडाउन की वजह से आरा, जहानाबाद और अब बांका में बच्चों की मौत हो चुकी है.
आरा के जवाहर टोला मुसहर टोली में 26 मार्च को 11 वर्षीय राहुल मुसहर की मौत हुई. परिवार ने कहा कि मौक़े पर इलाज नहीं मिला. घर में कुछ खाने को नहीं था. 10 अप्रैल को जहानाबाद एक तीन वर्षीय बच्चे की मौत हो गई क्योंकि उसे ऐंबुलेंस नहीं मिल पाया था.
इन तीनों मामले में परिवार ग़रीब है. आरा और बांका के मामले में परिवार ने साफ़-साफ़ कहा है कि उनके पास खाने की दिक्कत है लेकिन दोनों ज़िले के प्रशासन ने एशियाविल से कहा कि ऐसी कोई समस्या नहीं है. वहीं जहानाबाद वाले मामले में व्यवस्था ने लापरवाही की बात को स्वीकार किया है और दोषियों पर कार्रवाई की गई है.
सवाल केवल कार्रवाई करने का है ही नहीं. सवाल है व्यवस्था बहाली की. सवाल है कि लॉकडाउन की इस स्थिति में समाज के आख़िरी पायदान पर खड़े लाखों परिवार का ख्याल कैसे रखा जा रहा है? सवाल ये भी है कि कोरोना से लड़ने के चक्कर में पूरे ब्लॉक को एक आयुष डॉक्टर के भरोसे कैसे छोड़ दिया जा रहा है?
सवाल ये भी है कि बीमार बच्चे को समय पर एंबुलेंस क्यों नहीं मिला? सवाल ये भी है कि बिहार कब तक अपने बच्चों की मासूम लाशें अपने कंधों पर उठाता रहेगा? सवाल ये भी है कि राज्य की राजधानी से जो कहा जा रहा है वो जमीन पर कितना और किस रूप में उतर रहा है?
Report by : Vikash Kumar