मुजफ्फरपुर, प्रेम शंकर मिश्रा : ब्रिटिश शासन के खिलाफ महात्मा गांधी ने चंपारण से सत्याग्रह की शुरुआत की थी। मगर, उसकी रूपरेखा मुजफ्फरपुर में ही तैयार हो गई थी। साथ ही बापू ने यह जान भी लिया था कि उनके चंपारण जाने से अंग्रेज डरे हुए हैं। इससे अंग्रेजों की ताकत को भी उन्होंने भांप लिया था।

पटना से मुजफ्फरपुर आने के बाद गांधीजी ग्रियर भूमिहार ब्राह्मण (अब एलएस) कॉलेज पहुंचे। यहां हॉस्टल के व्यवस्थापक आचार्य जेबी कृपलानी ने उन्हें प्रो. मलकानी के घर के ऊपरी कमरे में उनके रहने की व्यवस्था की थी। मगर, कॉलेज के ब्रिटिश प्रिंसिपल को बापू का यहां ठहरना अच्छा नहीं लगा। कृपलानी के आग्रह पर वे अधिवक्ता गया प्रसाद सिंह के आवास पर ठहरे। यहीं आंदोलन की रणनीति तैयार हुई। सबसे पहले बिहार प्लांटर्स एसोसिएशन के सेक्रेटरी जेएम विल्सन से उनकी मुलाकात हुई। विल्सन ने सीधे तौर पर किसी तरह की मदद से इन्कार कर दिया। बापू की अगली मुलाकात तिरहुत के तत्कालीन आयुक्त एलएफ मोर्शेड व मुजफ्फरपुर के कलेक्टर डी वेस्ट के साथ हुई। आयुक्त ने भी मदद से इन्कार करते हुए सवाल पूछा, आपको यहां किसने बुलाया? साथ ही यह संदेश भी दिया कि वे चंपारण नहीं जाएं। ब्रिटिश पदाधिकारियों द्वारा मदद नहीं करने व चंपारण जाने से रोकने की कोशिश ने गांधीजी के सत्याग्रह की जमीन तैयार कर दी। उन्होंने भांप लिया कि अंग्रेज उनकी चंपारण यात्रा से डर गए हैं।

उन्होंने डॉ. राजेंद्र प्रसाद व ब्रजकिशोर बाबू को बताया, मैं तो दो दिन में जितना हो सकता था, उतना देखने आया था। मगर मुझे लगता है इस काम में दो वर्ष लगेंगे। इतना समय लगा तो भी देने के लिए तैयार हूं। मगर आपकी मदद चाहिए। उन्होंने अपनी गिरफ्तारी की आशंका भी जताई। धरणीधर, रामनवमी प्रसाद व गोरख प्रसाद के साथ चंपारण रवाना होने के साथ ही गिरफ्तारी वारंट का इंतजार करने लगे। जरूरत का सामान एक पेटी में रखी। बाकी सामान दूसरी पेटी में रखते हुए मगनलाल गांधी को पत्र लिखा, ‘अभी मैं चंपारण के लिए निकल रहा हूं। मेरी गिरफ्तारी नहीं हुई तो भी मैं कब वापस आऊंगा कह नहीं सकता। मैं अगर जेल गया तो अब तक का यह अंतिम पत्र होगा। जो भी घटेगा आपको तार से बताऊंगा। यहां आकर जेल जाने का विचार कोई भी नहीं करे।

Source : Dainik Jagran

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