प्रिय मुज़फ़्फ़रपुर 

हाँ अब तुमसे विदा होने की बेला आ गयी। वो कहते हैं न कि जो आया है उसे तो जाना ही है पर जाने क्यों एक जुड़ाव से हो गया था तुमसे। इस बात की पीड़ा तो है पर समय के साथ इसे भी सहना सीख गया हूँ मैं ।

इस दौरान कई चुनौतियां आईं पर तुमने ही तो सबसे जूझना सिखाया। मुझे अंदर से सशक्त बनाया । वैसे यहां हर एक वाकये ने मुझे कुछ सिखाया ही है। एक विश्वास जगाया है कि अब कोई भी बाधा लांघ सकता हूँ मैं.. जीत सकता हूँ मैं।

इतना ज़रूर है की जब भी बैठूंगा कभी फुरसत में, यादों का ताना बाना बुनने तो याद ज़रूर आएगा वो बाबा का मंदिर, वो दाता कम्बलशाह की मजार, वो मोतीझील बाजार। मनसपटल पर सदा अंकित रहेंगी यहां की खट्टी मीठी बातें , वो भांति भांति के लोग और वो मुज़फ़्फ़रपुर की स्पेशल गर्मजोशी।

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यहां खुशी और गम के कई पल देखे .. उनका अनुभव किया..आत्मसात किया। यहां जीत भी देखी और कई मासूमो को जीवन से हारते भी देखा । यूं कह लें कि एक मिश्रित एहसास रहा।

वैसे मैंने हर समय तुममे संभावना तलाशी , कोशिश की तुम्हें समझने की, पर तुम इतने गहरे थे कि वो संभव ही न हो सका। अब तो लगने सा लगा था कि जानने लगें हैं हम एक दूसरे को और ये विदाई का क्षण आ गया। कई सोची हुई बातें सोच तक ही सीमित रह गईं। परंतु मेरा मानना है कि जो होता है अच्छे के लिए ही होता है, इसलिए आशान्वित भी हूँ।

मैं जानता हूँ कि तुम्हें भुला पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है पर सच कहूँ तो शायद मैं भी तुम्हें कभी भूलना ही नहीं चाहता। तुम खुश रहो, सदा आबाद रहो । और हाँ डटे रहो .. क्योंकि मार्ग प्रशस्त करना है तुम्हें और भी आगे। हर एक पल के लिए तुम्हारा धन्यवाद ।

अलविदा!
फिर मिलेंगे। ज़रूर मिलेंगे 🙏

तुम्हारा अपना

आलोक घोष
नाम तो याद रहेगा ना ? 😀

17 फरवरी 2020

I just find myself happy with the simple things. Appreciating the blessings God gave me.