मुजफ्फरपुर। तुर्की प्रखंड के झीकटी गांव से निकलकर वैश्विक बौद्धिक मंचों तक पहुंचने की प्रेरणादायक कहानी रच दी है मिथिलेश कुमार सिंह ने। उनके द्वारा लिखित विचारोत्तेजक पुस्तक “अंबेडकर, इस्लाम और वामपंथ” ने न केवल भारत में, बल्कि हार्वर्ड, स्टैनफोर्ड, यूनिवर्सिटी ऑफ पेन्सिलवेनिया, यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलिना जैसे विश्वविख्यात विश्वविद्यालयों की पुस्तकालयों में भी अपनी जगह बना ली है।
इस पुस्तक की वैश्विक मान्यता यह दर्शाती है कि मिथिलेश कुमार सिंह की लेखनी आज न केवल राष्ट्रीय विमर्श में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय शैक्षणिक और वैचारिक जगत में भी गूंज रही है। यह पुस्तक डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचारों को इस्लाम और वामपंथी सोच के साथ संवाद में रखकर एक गहन वैचारिक विमर्श प्रस्तुत करती है।
मसूरी से लेकर अमेरिका तक गूंज
भारत सरकार के प्रतिष्ठित संस्थान लाल बहादुर शास्त्री नेशनल एकेडमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन, मसूरी, जहां IAS-IPS अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया जाता है, ने भी इस पुस्तक को अपने पुस्तकालय में स्थान दिया है। इसके अतिरिक्त, भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (ICHR), AICTE, गोवा सेंट्रल यूनिवर्सिटी सहित कई प्रमुख संस्थानों ने इसे अपने संग्रह में शामिल किया है।
अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, स्टैनफोर्ड, यूनिवर्सिटी ऑफ पेन्सिलवेनिया, और यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलिना, चैपल हिल जैसी प्रमुख यूनिवर्सिटीज की लाइब्रेरी में इस पुस्तक की उपलब्धता इस बात का संकेत है कि भारत के सामाजिक, धार्मिक और वैचारिक विमर्श पर वैश्विक शोधकर्ता गंभीरता से विचार कर रहे हैं।
पुस्तक का वैचारिक केंद्र
“अंबेडकर, इस्लाम और वामपंथ” पुस्तक डॉ. अंबेडकर के विचारों को इस्लाम और वामपंथ के सामाजिक पहलुओं से जोड़कर एक गहरी वैचारिक बहस प्रस्तुत करती है। लेखक ने ऐतिहासिक तथ्यों के माध्यम से यह स्थापित करने का प्रयास किया है कि अंबेडकर के विचार इन दोनों धाराओं के प्रति कितने स्पष्ट और स्वतंत्र थे। उन्होंने इन दोनों विचारधाराओं द्वारा अंबेडकर को अपने पक्ष में प्रस्तुत करने की कोशिशों को भी चुनौती दी है। जोगेन्द्रनाथ मंडल के साथ अंबेडकर की तुलना इस विमर्श को और भी समृद्ध बनाती है।
लेखक की प्रतिक्रिया
इस उपलब्धि पर अपनी प्रतिक्रिया में लेखक मिथिलेश कुमार सिंह ने कहा, “यह सम्मान न केवल मेरे लिए, बल्कि उस सामाजिक चेतना के लिए है, जिसे यह पुस्तक पोषित करती है। यह वैश्विक स्वीकृति इस बात का संकेत है कि भारत के सामाजिक मुद्दे अब स्थानीय सीमाओं से बाहर निकलकर अंतरराष्ट्रीय विमर्श का हिस्सा बन चुके हैं।”
मिथिलेश वर्तमान में गोपाल नारायण सिंह विश्वविद्यालय में सहायक कुलसचिव के पद पर कार्यरत हैं। उनकी यह पुस्तक अब शोधकर्ताओं, शिक्षकों, छात्रों और नीतिनिर्माताओं के लिए एक आवश्यक संदर्भ ग्रंथ बनती जा रही है।
इन वैश्विक संस्थानों में मिली पुस्तक को जगह
• हार्वर्ड यूनिवर्सिटी – शिक्षा और शोध का सर्वोच्च केंद्र
• स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी – तकनीकी और सामाजिक शोध में अग्रणी
• यूनिवर्सिटी ऑफ पेन्सिलवेनिया – अमेरिका की प्रतिष्ठित आइवी लीग यूनिवर्सिटी
• यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलिना, चैपल हिल – सामाजिक विज्ञान में अग्रणी
• LBSNAA, मसूरी – भारत सरकार का प्रमुख प्रशासनिक प्रशिक्षण संस्थान
यह पुस्तक मिथिलेश कुमार सिंह के लेखन की परिपक्वता और बिहार की वैचारिक विरासत की वैश्विक पहचान का प्रमाण बन गई है। यह सफलता पूरे मुजफ्फरपुर और हिंदी भाषी समाज के लिए गर्व का विषय है।