मच्छरों का प्र’कोप इस कदर बढ़ गया कि शहरवासियों का जी’ना मु’हाल हो गया है। दिन हो या रात, मच्छर पांच लाख शहरवासियों का खू’न पी रहे हैं। उनसे मु’क्ति दिलाने का जिम्मा नगर निगम पर है, लेकिन निगम मच्छरों को मा’रने की जगह म’क्खी मा’र रहा है और मच्छरों से मु’क्ति दिलाने का वादा कर कुर्सी पाने वाले पार्षद अपना वादा भूल गए।
मच्छर उन्मूलन अभियान के लिए खरीदी गई फॉगिंग मशीन शोभा की वस्तु बन गई है। वर्तमान नगर निगम बोर्ड के गठन और महापौर-उपमहापौर के कुर्सी पर बैठे ढाई साल हो चुके हैं। लेकिन, वे एक मच्छर तक नहीं मार सके हैं।
मच्छरों के दंश से बीमार हो रहे शहरवासी
मच्छरों की काट से शहर एवं उसके आसपास रहने वाले लाखों लोगों की नींद हराम हो चुकी है। पहले रात में उनका दंश झेलना पड़ता था, लेकिन अब दिन में भी चैन नहीं। वे न सिर्फ शहरवासियों की नींद उड़ा रहे हैं, बल्कि मलेरिया, कालाजार, डेंगू , जापानी इंसेफेलाइटिस जैसे संक्रामक रोगों का शिकार लोगों को बना रहे हैं।
कागज पर अभियान, फॉगिंग मशीन बीमार
मच्छरों पर नियंत्रण के लिए निगम द्वारा तीन साल पूर्व तीस लाख खर्च कर पांच आधुनिक फॉगिंग मशीन की खरीद की गई। स्टाक में इंट्री के बाद उनमें से दो लौटा दी गई। मशीनों को ढोने के लिए तीन ई-रिक्शा भी खरीदा गया। पिछले तीन साल में आधा दर्जन बार आधा-अधूरा अभियान चला। अब मशीन बीमार है, एक या दो दिन चलने पर खराब हो जाती है।
इलाज व वैकल्पिक उपायों पर कट रही जेब, मच्छरों के दंश से शहरवासी मलेरिया, डेंगू जैसी संक्रामक बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। कई जान तक गंवा रहे हैं। बीमार होने पर इलाज के लिए लोगों को बड़ी राशि खर्च करनी पड़ती है। वहीं, मच्छरों से बचने की वैकल्पिक व्यवस्था अर्थात साधनों पर भी जेब ढीली करनी पड़ती है। पर, इससे निगम प्रशासन को क्या लेना-देना। उसे तो बस जनता से टैक्स वसूली तक मतलब है। जनता बीमार हो या उनकी जान जाए, उसे कोई मतलब नहीं।
इस बारे में महापौर सुरेश कुमार ने कहा कि मौसम में बदलाव के साथ मच्छरों का प्रकोप बढ़ा है। फॉगिंग अभियान चलाने को वे नगर आयुक्त को पूर्व में ही निर्देश दे चुके है। उपलब्ध संसाधनों को अभियान में लगाया जाएगा ताकि मच्छरों का नियंत्रण हो सके।
Input : Dainik Jagran
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