भागलपुर में 20 करोड़ से अधिक के सिक्के बैकों व कारोबारियों के यहां डंप हो गए हैं। बैंक ग्राहकों से सिक्के लेने से कतरा रहे हैं, तो ग्राहक भी बैंकों से सिक्का लेना नहीं चाहते। डंप सिक्कों में सबसे ज्याद एक रुपये के सिक्के हैं। ये चलन में रहते हुए भी बाजार से लगभग बाहर हो गए हैं।

एलडीएम मोना कुमारी ने बताया कि सुलतानगंज में श्रावणी मेले में आए सिक्कों की गिनती अभी तक चल ही रही है। मशीन नहीं होने के कारण कर्मचारियों को इसे गिनने में समय लग रहा है। इससे बैंकों का कामकाज प्रभावित हो रहा है। एलडीएम ने बताया कि ग्राहक आरबीआई की गाइड लाइन का हवाला देकर बैंकों में सिक्के जमा तो करा ले रहे हैं, लेकिन सिक्का लेने की बारी आती है तो वह साफ मना कर देते हैं। इससे बैंकों में काफी सिक्के जमा हो गये हैं। उनकी सलाह है कि यहां के ग्राहकों को खुद सिक्के की डिमांड करनी चाहिए ताकि उसका उपयोग बाजार में हो सके। इससे सिक्के का चलन बना रहेगा। यूं तो दस करोड़ से अधिक के सिक्के करेंसी चेस्ट व विभिन्न बैंकों में धूल फांक रहे हैं मगर एलडीएम बैंकों में पांच करोड़ सिक्के डंप होने की बात ही स्वीकारती हैं, जबकि दूसरे बैंक अफसरों का कहना है कि यह आंकड़ा दस करोड़ के पार है।

15 करोड़ से अधिक के सिक्के दुकानदारों के पास

इस्टर्न बिहार चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष अशोक भिवानीवाला ने बताया कि जिले में छोटे-बड़े 30 हजार से अधिक दुकानदार हैं। यहां एक-एक सब्जी विक्रेता के पास 10 से 15 हजार रुपये के सिक्के जमा हो गये हैं। बैंकों को चाहिए कि एक साइज के सिक्का का वजन कर रुपये में इसका भाव तय कर दें।

सिक्का रखने के लिए कम रुपये लेने को व्यापारी तैयार 

कागज कारोबार से जुड़े गोपाल खेतड़ीवाल का दावा है कि यहां ढ़ाई सौ बड़े व्यापारियों के पास 20 करोड़ से अधिक के सिक्के पड़े हैं, जिनके खपाने के लिए वह कम रुपये लेने को भी तैयार हैं। एक हजार के सिक्के के बदले वे नौ सौ रुपए भी लेने को तैयार हैं। बैंकों को कोई रास्ता निकालना चाहिए।

आरबीआई ने जबरन बैंकों को थमाये सिक्के

बिहार प्रोंविंसियल बैंक इम्पलाईज एसोसिएशन के उप महासचिव अरविंद कुमार रामा ने बताया कि देश में पहले 15 लाख 44 हजार करोड़ रुपये ही चलन में था। लेकिन नोटबंदी के बाद सरकार ने छह लाख करोड़ अतिरिक्त नोट व सिक्के छाप दिये, जिसके बाद आरबीआई ने बैंकों को बिना डिमांड सिक्के भेज दिया।

आथिर्क मंदी का बड़ा कारण

अर्थशास्त्र के जानकार प्रोफेसर आरडी शर्मा बताते हैं कि इतने सिक्कों के निष्क्रिय होना मंदी का बड़ा कारण बन रहा है। इतनी अधिक मात्रा में पैसे के डंप होने का प्रभाव क्रय शक्ति और बाजार पर पड़ रहा है। किसी का खर्च दूसरे की आमदनी होती है। यदि एक सिक्का दिन भर में दस हाथों में जाता है तो एक सिक्के का हिसाब दस रुपए के बराबर हुआ। ऐसे में पूरे देश में अरबों के सिक्कों का डंप होना अर्थव्यवस्था पर बड़ा प्रभाव डालने वाला मामला है। सीए प्रदीप झुनझवाला ने बताया कि पैसे से पैसा बनता है। सिक्कों का चलन नहीं होने से बड़ी राशि जाम हो रही है। इससे बाजार बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।

Input : Hindustan

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